हमास का इज़राइल पर हमला क्यों? क्या होंगे इसके ज़मीनी के साथ साथ भू राजनैतिक और कूटनीतिक परिणाम?

फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास द्वारा शनिवार के तड़के केवल 20 मिनटों में इज़राइल पर पांच हज़ार रॉकेट दाग दिये गये। इससे इज़राइल में 1200 से ज़्यादा लोगों के मरने की खबर है, जिनमें कई

सैनिक भी हैं। बदले में इज़राइल के हवाई हमलों में गाजा पट्टी में भी अब तक 1000 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं! इस रॉकेट हमले के साथ साथ हमास ने इज़राइल के तमाम शहरों में ज़मीनी हमले भी किए हैं, जिनके लिए वह ज़मीन, हवा और जल तीनों रास्तों से घुसे हैं। उन्होंने इज़राइल की सीमा पर लगे कँटीले तारों समेत कई अन्य सुरक्षा उपकरणों को बुलडोज़रों से रौंद डाला और इज़राइल में घुस गये। साथ ही उन्होंने नावों और पैराग्लाइडर्स का भी इस्तेमाल किया है। शुरुआती दौर में हमास के लड़ाकों ने कई इज़राइली शहरों पर पूरा क़ब्जा कर रखा था जिन्हें छुड़ाने में इज़राइल की सेना माने इज़राइली डिफेंस फ़ोर्स के पसीने छूट गए। साथ ही हमास ने कम से कम 100 इज़राइली नागरिकों को बंधक भी बना लिया है और उन्हें गाजा पट्टी में ले गये हैं। यह उनकी बड़ी ताक़त बनेगा क्योंकि इज़राइल की जवाबी कार्रवाई में यह बंधक हमास के लिए सुरक्षा की गारंटी साबित होंगे!

इज़राइल का कुल इतिहास युद्ध का इतिहास रहा है और उसमें पहली बार ऐसा हुआ है कि वह सदमे में दिखा है। पहली बार उसके नेतृत्व की घबराहट साफ़ है। भले ही जवाब देते प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ऐलान किया है कि ‘उनका देश युद्ध के बीच है’ और उन्होंने लंबे और कठिन युद्ध की धमकी दी है, साफ़ है कि इज़राइल को समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे आख़िर हमास यही चाहता है कि इज़राइल गाजा पट्टी में ज़मीनी युद्ध में घुसे- दुनिया की सबसे ज़्यादा जनसंख्या घनत्व वाले इलाक़ों में से एक गाजा पट्टी में ज़मीनी हमले का मतलब होगा शहरी गुरिल्ला युद्ध जिसमें भारी संख्या में इज़राइली सैनिकों और गाजा के नागरिकों की बलि चढ़ेगी। और गाजा के हर ग़ैर लड़ाकू नागरिक का मारा जाना इस्लामिक दुनिया में इज़राइल और उसका साथ दे रहे पश्चिमी देशों के लिए नफ़रत बढ़ाएगा!

1. हमास का यह हमला सिर्फ़ उसका सबसे बड़ा हमला ही नहीं, असल में वियतमिंह द्वारा 1954 में फ़्रांस के ठिकानों पर दियन बियन फू हमले के बाद किसी भी संगठन द्वारा उसके देश पर क़ब्ज़ा किए बैठे किसी ताकतवर देश के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा हमला है। 2. इस हमले ने इज़राइल के फैलाए तमाम भ्रम तोड़ के रख दिये हैं। सबसे ताकतवर सेना, दुनिया की सर्वश्रेष्ठ ख़ुफ़िया एजेंसी, सीमा सुरक्षा वग़ैरह। एक साथ इतना बड़ा हमला कि मिसाइल रोधी आयरन वॉल टूट गई, सीमा पार कर ज़मीन, हवा (पैराग्लाइडर) और पानी (नावों) से हमला! साफ़ है कि इतने बड़े हमले की तैयारी में महीनों लगे होंगे और इज़राइल को हवा तक नहीं लगी! इसके पीछे एक वजह यह भी है कि अब तक की सबसे दक्षिणपंथी सरकार के प्रशासन में इज़राइल ख़ुद अपने भीतर तमाम गंभीर विवादों से जूझ रहा है। सरकार द्वारा न्यायपालिका के अधिकारों में कटौती करने वाले कदमों के खिलाफ वहां जन आंदोलन जारी हैं।

ख़ैर, आगे बढ़ने के पहले इस हमले के तात्कालिक कारणों को समझना ज़रूरी है। ख़ुद हमास ने इस हमले के पीछे इज़राइल और फ़िलिस्तीन की लंबी दुश्मनी, ख़ास तौर पर इस्लाम के लिये पवित्र अल अक़्सा मस्जिद पर इज़राइली हमलों को ज़िम्मेदार बताया है। याद रहे कि अल अक़्सा मस्जिद की ज़मीन को यहूदी और मुस्लिम दोनों पवित्र मानते हैं और दोनों उस पर दावा करते हैं। यहूदी इसकी पश्चिमी दीवार को यहूदी मंदिर का अंतिम अवशेष मानते हैं तो वहीं फिलिस्तीनियों की मान्यता है कि यह अल बराक़ मस्जिद की दीवार है। उनके लिहाज से मक्का व मदीना के बाद यह मुस्लिमों के लिये सबसे पवित्र स्थान है। 1970 के दशक में एक समझौता हुआ था कि गैर मुस्लिम यहां आ सकते हैं परन्तु वे कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं कर सकेंगे। पिछले दिनों इसलिये विवाद भड़का क्योंकि यहां आकर कुछ यहूदियों ने पूजा करने की कोशिश की थी। हमास ने यह आक्रमण ऐसे दिन पर (शनिवार को) बोला जब यहूदियों का पवित्र त्यौहार सिमचैट टोरा मनाया जा रहा था।इसी मार्च में इज़रायली पुलिस द्वारा मस्जिद की दीवाल पर हैंड ग्रेनेड फेंक उसे अपवित्र करने पर भारी तनाव हुआ था। इसके पहले 2021 में भी इसी मस्जिद को लेकर इज़राइल और हमास में 11 दिन लंबा युद्ध हुआ था जिसमें 65 बच्चों समेत सैकड़ों फ़िलिस्तीनी मारे गये थे!

पर असल में बात इतनी सीधी और आसान नहीं है। हमास के इस हमले के पीछे एक और बड़ा कारण है जिसकी चर्चा कम ही लोग कर रहे हैं। वह कारण है अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प के शासनकाल में हुए अब्राहम एकॉर्ड्स जिनके तहत संयुक्त अरब अमीरात उर्फ़ यूनाइटेड अरब एमिरेट्स और बहरीन ने इज़राइल को मान्यता दे दी थी! यह किसी अरब देश द्वारा इज़राइल को पहली मान्यता थी और फ़िलिस्तीन की लड़ाई को बड़ा धक्का। फ़िलिस्तीन के दोनों बड़े संगठनों, आधिकारिक अल फ़तह और पश्चिमी देशों द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित हमास दोनों ने इन समझौतों का विरोध किया था और फ़िलिस्तीन को ५० बिलियन डॉलर की सहायता की घोषणा को ठुकराते हुए इसका बहिष्कार किया था! तबसे इस तरह के प्रयास और बढ़े ही हैं। अभी पिछले दिनों इज़राइल के एक वरिष्ठ मंत्री ने सऊदी अरब की यात्रा की जो इन दोनों देशों के इतिहास में पहला ऐसा मौक़ा था जब सऊदी अरब ने किसी इज़राइली मंत्री को होस्ट किया हो! सऊदी अरब ने इज़राइल के हवाई जहाज़ों को अपनी वायु सीमा में उड़ने का अधिकार भी दिया है, साथ ही पहली बार यहूदियों को सऊदी अरब में पूजा की इजाज़त भी!

साथ ही ट्रम्प प्रशासन ने इज़राइल में अपने दूतावास को तेल अवीव से हटा जेरुशलम में भेज दिया था जिसको लेकर फ़िलिस्तीनियों में भारी नाराज़गी थी क्योंकि उनका वेस्ट जेरुशलम के एक बड़े हिस्से पर दावा है। उनकी इसी संवेदना को देखते हुए ट्रम्प के पहले के किसी प्रशासन ने इज़राइल की तमाम माँगों के बावजूद दूतावास स्थानांतरित करने से इंकार किया था क्योंकि इस कदम से पूरे जेरुशलम पर इज़राइली दावे को मज़बूती मिलती है!

और यह वह जगह है जहाँ हमास के हमले की टाइमिंग और साफ़ होकर आती है! हमास का यह हमला १९७३ में योम किप्पुर के ही दिन यानी ६ अक्टूबर १९७३ को इजिप्ट और सीरिया के इज़राइल पर हमले की बरसी के दिन किया है! हालाँकि 1978 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के निमंत्रण पर तब के इज़राइली पीएम मेनाकेम बेगिन और मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात के बीच कैम्प डेविड में शांति समझौता हुआ था जिसके बाद दोनों के संबंध तनावपूर्ण सही स्थिर रहे, लेकिन बाक़ी इज़राइल के बाक़ी अरब देशों के साथ संबंध कभी सामान्य नहीं हुए। ऐसे में अमेरिका की मदद से अब्राहम एकॉर्ड्स और अन्य समझौतों से अरब इज़राइल संबंध सामान्य बढ़ने की दिशा में बढ़ते तो फ़िलिस्तीन की लड़ाई को बड़ा नुक़सान ही होना था। साफ़ है कि हमास का यह हमला बेशक अरब देशों की इज़राइल से बढ़ती नज़दीकियों को रोकने का भी एक प्रयास है!

हमले के बाद यूएसए और नाटो देशों ने हमेशा की तरह इज़राइल के "आत्म रक्षा" और उसके लिए गाजा पर हमले के अधिकार का समर्थन किया है। रुस और चाइना चुप हैं। भारत के प्रधानमंत्री के हमास का नाम लिये बिना इस 'आतंकी" हमले की निंदा की ट्वीट जिसे विदेश मंत्री ने भी रीट्वीट किया है भारत के विदेश मंत्रालय का अब तक कोई बयान नहीं है। अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगी सऊदी अरब और क़तर और उसके आज के सबसे बड़े दुश्मन ईरान ने इज़राइल को ख़ुद ज़िम्मेदार बताया है! अरब लीग ने गाजा की स्थिति पर विचार के लिए आज अपने विदेश मंत्रियों की आपात बैठक बुला ली है। इज़राइल ने गाजा में ज़मीनी कार्रवाई की तो यक़ीन मानिए कि ज़मीनी ही नहीं, डिप्लोमेटिक हालात भी और बिगड़ेंगे!

कुल मिला के हमास अपने मक़सद में कामयाब हो चुका है। अब्राहम अकॉर्ड्स जिनमें अमेरिका अरब देशों से इज़राइल के रिश्ते सामान्य करवा रहा था, इज़राइल को मान्यता दिलवा रहा था, सऊदी इज़राइली अलायंस बना रहा था वो ध्वस्त हो गया है! वह इज़राइल को सीधे सीधे गाजा में ज़मीनी लड़ाई- माने अर्बन वारफेयर के लिये ललकार रहा है। और इज़राइल को गाजा जैसी दुनिया की सबसे ज़्यादा जनसंख्या घनत्व वाले, संकरे इलाक़े में घुसने के पुराना अनुभव है जिसमें कौन दुश्मन लड़ाका है और कौन आम नागरिक यह पहचानना ही बहुत मुश्किल है!2008 में भी इज़राइली सेना गाजा में घुसी थी पर फिर उसी तेज़ी से उसे भागना भी पड़ा था! हमास समेत अन्य फ़िलस्तीनी संगठन चाहते ही यहीं है कि इज़राइल उनके इलाक़े में घुस के लड़ने को मजबूर हो! उस इलाक़े में जिसकी हर गली हर कूचा वो जानते हैं पर इज़राइल नहीं!

इस बार भी घुसी, तो इसके बाद गाजा में बहा खून का हर कतरा हमास की ताक़त बढ़ाएगा बशर्ते हमास इस्लामिक स्टेट टाइप दरिन्दगी ना करे! वो करेगा तो हमास को नुक़सान होगा!

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