राग अन्ना उर्फ चार कवितायें: एक मौलिक, दो लघु मौलिक और एक (मेरी) घनघोर नक़ल..

यूँ तो यह सारी कवितायें सितम्बर के उस खुश्क मौसम में लिखी गयीं थी जब गर्मियां चिपचिपाती उमस में तब्दील हो रही थीं और तमाम क्रांतिकारियों के विचारों के घोड़े अन्ना का रथ खींचने में लगे थे. वह रथ जिसपर भगवा पताका लहरा रही थी. यकीन करें कि कसूर इन क्रांतिकारियों का नहीं मौसम का था. अब उस मौसम में जिसमे रेत में पानी का भ्रम होने लगे, भगवा का लाल दिखना संभव था ही. यूँ भी कुछ क्रांतिकारियों का लाल झंडा वही झंडा है जो हाथों में लेकर हनुमान जी लंका में कूदे थे.

अब महीनों बाद जब टीम अन्ना के एक लाल सदस्य हिमाचल की भाजपाई सरकार से कौड़ियों के भाव जमीन ले चुके हैं, जब टीम अन्ना की एक दूसरी सदस्या इकानामी क्लास में की गयी एक हवाई यात्रा के लिए दो अलग अलग संस्थाओं से बिजिनेस क्लास का किराया लेने का महान ईमानदार कारनामा कर चुकी हैं, जब उत्तराखंडी (और भाजपाई) लोकपाल बिल के स्वागत में लहालोट हो जाने वाले टीम अन्ना के एक और सदस्य कांग्रेसी लोकपाल बिल के बाद संसद में कोई विश्वास न रह जाने की घोषणा कर चुके हैं यह सारी कवितायें फिर से पेश हैं.. इनमे से एक मौलिक है, दो लघु मौलिक हैं, और मेरी वाली घनघोर नक़ल है...माफी इस बात के लिए भी कि अपनी नक़ल में मैंने कुछ और इजाफा भी कर दिया है..


मृत्युंजय

अछूत जनता!

देखो, देखो, छू मत जाना,
जनता से !

बंद कक्ष की कठिन तपस्या खंडित होगी
पोथे-पत्रे क्रांतिकारिता के सब गंदे हो जायेंगें
मंदे पड़ जायेंगें धंधे क्रान्ति- व्रांति के
सात हाथ की चौकस दूरी हरदम रहो बनाए
छाया भी न कहीं पड़ जाए...

जनता संघी, जनता पागल, जनता है बदमाश
मध्य वर्ग कैंडिलधारी है, निम्न वर्ग बकवास
दिल्ली, बंबई, बंगलोर में लघु कमरों के अंदर
पांच-पांच रहते हैं सब है अन्ना टीम के बन्दर
नौजवान-नवयुवती करते पिकनिक में आन्दोलन
तुम पवित्र अति धीर भाव करते विचार उत्तोलन

यह जनता अब काम न देगी
जनता नयी गढ़ाओ
कुछ सुमेरु कुछ मंगल ग्रह से
कुछ नेपाल से कुछ क्यूबा से
जनता मांग ले आओ
क्रान्ति की अलख जगाओ !

देखो बंधू, छू मत जाना
मत शरमाना
जनता नयी मंगाना
फिर बदलना ज़माना.




हिमांशु पांड्या

चमार जनता सुनार जनता


क्रांतिकारी कवि ने खाए दो दर्ज़न केले
ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले
जनता की तलाश में इसने कितने पापड बेले

टाटा बोला- मै जनता हूं
जिंदल बोला - मैं जनता हूं
कवि ने झुककर माना , उसको जनद्रोही न कहलाना था
रालेगान सिद्धि में पायी असली जनता
चमार जनता- सुनार जनता
एक राजनीतिक दल के तो था नाम में जनता

कोर्पोरेट सेक्टर ने बोला-हम ही तो हैं असली जनता
हमरी मानो, सरकारी से छीनो सबकुछ
हमरे पाले में लाओ
कवि ने सोचा
यह तो जन की सच्ची सेवा
सरकारी तो दुश्मन जन का

कल से कवि इस जनता के ही आगे शीश झुकायेगा
खुद को जनता मान न पाया
भला और के 'जन' होने के दावे को वह
कैसे खारिज कर पायेगा

इस स्वयम्भू जनता की जय हो

जन जन का है एक बल , एक आस विश्वास
इरोम शर्मिला को बनवास
'बहन अरुंधती' को कारावास .

अशोक कुमार पाण्डेय


कवि कुछ ऎसी अदा बनाओ

कवि कुछ ऎसी अदा बनाओ
जिस एंगल पर कैमरा घूमे
सामने भीड़ के तुम्हीं दिखाओ
कवि कुछ ऎसी अदा बनाओ

वर्ग-फर्ग का छोड़ो चक्कर
जैसा नमक वैसी ही शक्कर
जैसी छुअन वैसी ही टक्कर
समरसता के भरम उपजाओ
कवि कुछ ऎसी अदा बनाओ

ऐसे कलम को साधो साथी
चूहा दिखे तो लिक्खो हाथी
लाल दिए में भगवा बाती
जनता के नाम जलाओ
कवि कुछ ऎसी अदा बनाओ

बेकरी वाली जनता आई
मंदिर वाली जनता आई
असली वाली जनता आई
बकिया सारे जंगल जाओ
कवि कुछ ऎसी अदा बनाओ

मंचों की साजिश को भूलो
चेहरों की कालिख को भूलो
नोटों की बारिश को भूलो
बस अन्ना रंग में रंग जाओ
कवि कुछ ऎसी अदा बनाओ

खैर ये रंग भी उतरेगा ही
हम ही साथ रहेंगे तब भी
बहुत लड़ाई अभी है बाक़ी

थोड़ा मन को धीर धराओ
कवि मत ऎसी अदा बनाओ

बनो दोस्त तो कल शर्माओ




अपन वाली बोले तो घनघोर नक़ल वाली

मार्क्सवादी-अन्नावादियों का क्रान्तिगीत


क्रांति के लिए जली मोमबत्ती
क्रांति के लिए बढ़ी टोपी

क्रान्ति के लिए भेजे एस एम् एस
क्रांति के लिए अपडेट किये स्टेटस
राजनीति के विरुद्ध पूंजीवाद के लिए
हर गरीब जिंदल टाटा और बजाज के लिए
शोषित पीड़ित सवर्ण जात के लिए
हम लड़ेंगे हमने ली कसम

छिन रही हैं टाटा की रोटियां
बिक रही हैं जिन्दलों की बोटियाँ
किन्तु मजदूर भर रहे हैं कोठियां..
लूट का ये राज हो खतम
हम लड़ेंगे...

लोकतंत्र चाहते हैं लोकतंत्रखोर
ताकी राज कर सकें कल के शूद्र चोर
पर जवान जहाँ है कठोर
और फिर फोर्ड जब है हमारी ओर
डॉलरों के जोर पे जीत लेंगे हम..
हम लड़ेंगे..

क्रांति के लिए बढ़ी टोपी
क्रांति के जली मोमबत्ती ...

क्रान्ति के लिए की मोदी की तारीफ़
क्रान्ति के लिए चुने रकीब
क्रान्ति के लिए थे भाजपाई उत्तराखंड के बिल के साथ
क्रान्ति के लिए कांग्रेसी लोकपाल के खिलाफ
क्या हुआ कि दोनों हैं बिलकुल एक समान
आखिर टीम अन्ना को जमीन देते हैं हैं हिमाचली शांताराम..
कांग्रेस-राज को करेंगे अब खतम..
हम लड़ेंगे...

हम नहीं हैं भाजपा के साथ
हमारा दुश्मन है केवल हाथ
येदुरप्पा कौन है हम नहीं जानते
महाजनों को हम नहीं पहचानते
बस सिब्बलों को देख लेंगे हम..
हम लड़ेंगे..

ये आख़िरी जंग है तू साथ आ
जनलोकपाल के लिए नारे लगा..
भूख का मुद्दा हुआ खतम..
दिल्ली की सर्दी सह न सके तो क्या
देश के लिए देंगे जान हम..

हम लड़ेंगे हमने ली कसम..
वंदे मातरम...

Comments

  1. एक से बढ़कर एक. अन्ना का पन्ना गायब हो चुका है.

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