तुम कहाँ हो तापसी!


[25-07-2013 को दैनिक जागरण, राष्ट्रीय संस्करण के स्थायी स्तम्भ 'फिर से' में प्रकाशित]

कहाँ हो आज तुम, तापसी मलिक? जहाँ भी हो, काश आज तुम देख पातीं उन मुखौटों के पीछे छुपा असली चेहरा जो तुम्हारे मृत शरीर को अपने अश्वमेध का घोड़ा बना सत्ता तक पंहुचे थे. फिर तुम्हे समझ आता कि मैली-कुचैली सी सूती साड़ी पहन तुम्हारा अपना होने का नाटक करने वाली उस मक्कार औरत का सच क्या है. यह भी कि उसकी सफ़ेद साड़ी के आँचल का लाल रंग रंगरेजों की मेहनत से नहीं बल्कि तुम्हारे खून से आता है.

काश, आज तुम यहाँ होती. फिर शायद बता पाती तुम उसे कि हमारे जैसे पितृसत्तात्मक समाजों में बलात्कार छिपाने की परम्परा रही है और किसी औरत को, किसी भी औरत को, बलात्कार के खिलाफ़ कानूनी लड़ाई शुरू करने में बलात्कार की पीड़ा से उबरने से भी ज्यादा ताकत और ज्यादा संबल की जरूरत होती है. पूछ पाती फिर तुम उससे कि पुलिसिया जांच के पहले ही इस ‘आरोप’ को उसकी सरकार को ‘अस्थिर करने की साजिश’ बताती हुई उस मुख्यमंत्री को क्या तुम याद आयी थीं? यह भी कि उसके बयान के चौबीस घंटे के भीतर ही पुलिस द्वारा पीड़िता के बयान को सच मान लेने पर उसे कोई शर्म आई भी थी या नहीं.

काश आज तुम यहाँ होतीं. फिर शायद यह पूछना आसान हो जाता कि सामूहिक बलात्कार की पीड़ा से अभी उबर भी नही पायी एक औरत के लिए ऐसे चारित्रिक लांक्षन का हमारे जैसे समाजों में क्या मतलब होता है. यह भी कि ‘क़ानून के शासन’ वाले एक ‘लोकतांत्रिक’ देश में आरोप तय करने का अधिकार पुलिस से छीन कर मुख्यमंत्रियों को कब से दे दिया गया है? शायद यह भी, कि राज्य की सरगना ही इस आरोप को झूठा बता रही हो तो हम निष्पक्ष जांच की, दोषियों को सजा की उम्मीद कैसे करें? तापसी, काश आज यहाँ तुम होतीं. फिर पूछ पाते हम सब उस मक्कार से कि आरोपी अगर उसके अपने हों, उसकी अपनी पार्टी के हों तो औरतें झूठी कैसे हो जातीं है और बलात्कार राजनीतिक साजिशों में कैसे बदल जाते हैं.

पर तापसी, उनसे कुछ मत पूछना जिन्होंने अपने लाल झंडे उस मक्कार के पांवों में कालीन की तरह बिछा दिए थे. वे, जो आसमान धरती पर उतार लाये थे तुम्हारे ऊपर हुए अत्याचार के खिलाफ़ और फिर बिहार चले गए थे. काश आज तुम होतीं, तब शायद देख पाती कि बिहार में उन्होंने तुम्हारे बलात्कारियों और हत्यारों के साथ ही ‘सीट-शेयरिंग’ की थी. फिर जनता को गठबंधन(अलायंस) और सीट-शेयरिंग का फर्क समझाते समझाते वह अपनी सारी सीटें गँवा बैठे थे. अब तो वे और आगे निकल आये हैं तापसी, और भी आगे. अब उन्हें अपने लाल झंडे विश्व हिन्दू परिषद के, आरएसएस के लोगों से भरे अन्ना के मंच के नीचे लहराना क्रान्ति की दिशा में बढ़ा कदम लगता है. उन्होंने अब तक कुछ नहीं बोला है इस मामले पर, उन दिनों से अलग जब वह सिर्फ पश्चिम बंगाल पर ही बोला करते थे.

अब उनसे क्या पूछोगी तापसी, जिनकी इस मसले पर चुप्पी एक मुकम्मिल बयान है. .

उनसे भी कुछ मत पूछना तापसी, जो पितृसत्ता की झंडाबरदार उस मक्कार औरत को पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बना देखना चाहते थे. उन्होंने तो कीमतें चुकानी शुरू भी कर दी हैं.. सिर्फ अपने जीदार कामरेडों की फर्जी मुठभेड़ों में ह्त्या नहीं, बल्कि हत्या के बाद उनके मृत शरीरों के साथ की गयी बर्बरता और अपमान के रूप में भी.. उनके साथ तो हमारी सहानुभूति बनती है, बावजूद उस अराजकता के जिसको वह इन्कलाब का रास्ता मान बैठे हैं.

अब तो जो भी सवाल बनते हैं इस मुल्क से बनते हैं. जैसे कि यह कि इस तरह के गैरजिम्मेदार बयान देकर भी ये हुक्मरान कैसे बच निकलते हैं? ‘क़ानून का शासन’ वाले दुनिया के किसी और देश में, किसी और जम्हूरियत में, इस तरह के बयानों को न केवल जांच को प्रभावित करने वाला माना जाता बल्कि आरोपी अपराधियों को फायदा पंहुचाते इन बयानों का आपराधिक संज्ञान लेकर दोषियों पर कार्यवाही भी की जाती. पर फिर लोकतंत्र होने और लोकतंत्र का दावा करने में फर्क तो होते ही हैं.

बहुत निर्मम लगेगा शायद यह सुनने में तापसी, पर फिर ऐसे लोकतंत्र में जीना शायद मर जाने से भी बदतर है. आखिर को हुक्मरानों में सिर्फ वह मक्कार औरत ही नहीं, छत्तीसगढ़ वाला वह निर्मम पुलिसिया भी तो है जो सोनी सूरी को धीरे धीरे जिबह करता है और वह राज्य सरकार भी जो उस पुलिसिये के शौर्य के लिए उसे सम्मानित करती है. होने को तो वह सुप्रीम कोर्ट भी है जो निर्मम टार्चर का जवाब मांगते हुए भी उस पुलिसिये को एक महीने का समय देती है.

पर फिर, काश आज तुम होतीं तापसी. सिर्फ जिन्दा भर रह जाने की जद्दोजहद में लगे हम तमाम लोग शायद तब इस मुल्क से ही कुछ कठिन सवाल पूछ पाते.

Comments

  1. jindgi ka ek matra lakshya ----- liberation ko gaali dena...infantile disorder long live!!!

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  2. jindgi ka ek matra lakshya ----- liberation ko gaali dena...infantile disorder long live!!!

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  3. मार्क्स-लेनिन-अन्नावादी क्रांतिकारी अब अपना नाम बताने से भी डरने लगे? विमर्श का नया स्तर है क्या भाई ये/

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