अतानु भुइयाँ उर्फ पेड़ों पर नहीं उगते बलात्कारी!


सर्वप्रथम: इस लेख में प्रयोग की गयी भाषा मेरी अपनी नहीं वरन अतानु भुइयाँ द्वारा उनके ‘ट्वीट्स’ में प्रयोग की गयी भाषा है. हाँ, भाषा को छोड़कर इस लेख में लिखे गए सब कुछ, जिसमे उन्हें संभावित बलात्कारी कहना भी शामिल है, के लिए मैं और सिर्फ मैं जिम्मेदार हूँ.

बात मीडिया की है तो शायद चीखते चैनलों की भाषा में शुरू करना मौजू होगा. तो फिर, गौर से पहचान लीजिए ये चेहरा. ये वह चेहरा है जो ‘एक नजर भर में ‘वेश्याओं’ को पहचान लेता है, औरतों से अलग ‘वेश्यायों’ को. मानना पड़ेगा कि कमाल की खूबी है ये इसकी. पर है कौन ये? कोई खुर्राट पुलिसिया? सांस्कृतिक राष्ट्रवादी पुलिसिया? कुछ और. नहीं जनाब, इनमे से कुछ नहीं है ये. फिर? जो भी हो, एक बात तो माननी पड़ेगी कि इस आदमी को ‘वेश्यायों’ के साथ का बहुत अनुभव है. इतना कि शक हो जाये कि कहीं ये लड़कियों को वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेलने वाले किसी ‘रैकेट’ के साथ तो नहीं जुड़ा है? न, कतई नहीं. ये आदमी तो पत्रकार होने का दावा करता है. वह भी कोई छोटा मोटा खबरिया नहीं बल्कि एक चैनल के ‘एडिटर-इन-चीफ’ होने का. (अब रहा नहीं वैसे, इसने अपने पद से ‘स्वेच्छा’ से इस्तीफा दे दिया है.)

इस लेख में मैं अपनी तरफ से ज्याद कुछ नहीं कहूँगा. बस इस ‘संपादक’ की ‘ट्वीट्स’ अपनी टिप्पणियों के साथ आपके सामने रख दूंगा. बेशक मैंने इसकी सारी ‘ट्वीट्स’ नहीं ली हैं, खास तौर पर टीआरपी और इसकी अपनी खुशफहमियों वाली छोड़ दीं हैं. आप चाहें तो उन्हें भी देख सकते हैं, यह रही इसकी ‘ट्विटर’ प्रोफाइल. (अभी तक हो तो, फेसबुक वाली तो इसने ‘डिलीट’ कर दी)

अतानु भुइयाँ मैं पांच साल से न्यूजलाइव का नेतृत्व कर रहा हूँ. और मैंने देखा है कि यौन हिंसा की ज्यादातर घटनाएं ‘बारों’ (शराबघरों) के सामने होती हैं. [1.31 बजे रात, 11 जुलाई, ब्लैकबेरी द्वारा]

(यहीं से शुरू होता है सब कुछ. अगली कुछ ट्वीट्स यह बताती हैं कि ऐसा क्यों होता है.)

अतानु भुइयाँ
बारों और नाईटक्लबों में जाने वाली महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा वेश्यायों का होता है. [1:31 AM, 11 जुलाई,]

(दोनों ट्वीट्स को जोड़ें और आप समझ सकते हैं कि अतानु भुइयाँ के मुताबिक़ बारों के सामने ही सबसे ज्यादा यौन हिंसा क्यों होती है. क्योंकि उनमे जाने वाली महिलओं का एक बड़ा हिस्सा ‘वेश्यायों’ का होता है. इसमें अन्तर्निहित ध्वनि है कि ‘वेश्यायों’ के साथ ऐसा करना कानूनी रूप से ना सही सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से तो स्वीकार्य है ही. अब अपने आप से पूछिए कि ये खबरिया, ये ‘संपादक’ किस मुल्क में रहता है भला? कम से कम मेरी जानकारी के मुताबिक तो ‘वेश्यायों का बलात्कार’ सउदी अरब जैसे देश के नागरिकों का भी ‘मूल अधिकार’ नहीं है. पर शायद अतानु को लगता है कि ऐसा होना चाहिए.

वैसे एक दूसरे स्तर पर इस बात से यह तो साबित हो ही जाता है कि हम ‘अतुल्य भारत’ में रहते हैं. अतुल्य इसलिए नहीं कि यह बहुविविधिताओं वाला देश है. अतुल्य इसलिए कि यहाँ ऐसे महान लोग संपादक हो नहीं सकते, बल्कि होते हैं.

और अब सब भूल के मुझे यह बताइये कि बार जाने वाली ‘ज्यादातर’ महिलाओं को ‘वेश्या’ बताना महिलाओं का वर्गीय चरित्रहनन है या नहीं? वह भी तब अगर उन्हें ‘वेश्या’ बताना उनके ऊपर यौन हिंसा के लिए समाज को भड़काना न हो तब? )


अतानु भुइयाँ
टीआरपी: रामधेनु: 25.35, प्राइम न्यूज: 26.69, न्यूजटाइम असम:25.82, डीवाई365:154.69, रंग:169.79 न्यूज लाइव:270.76 [1.40 pm रात]

(इस ट्वीट से छलक छलक पड़ रही ‘खुशी’ के बारे में शायद कुछ कहने की जरूरत तक नहीं होगी. पर किस बात की खुशी मना रहा है अतानु भुइयाँ? उस टीआरपी की जो विज्ञापन लायेगी, और वह विज्ञापन जो बाद में पैसा लायेंगे? पर फिर तो भुइयाँ का नुकसान हो गया यार! यौनहिंसा से इतनी टीआरपी आयी है तो बलात्कार के ‘लाइव’ प्रसारण से कितनी आती? पर उसने सोचा होगा कि खैर, चलो जरा कम ही सही पैसे तो बने!)

अतानु भुइयाँ
मैंने एक वीडियो यूट्यूब पर अपलोड कर दिया है. (मैं वीडियो का लिंक नहीं दे रहा हूँ, आक्रोश के लिए किसी लड़की, दोहराता हूँ किसी लड़की का अपमान जरूरी नहीं है)
[अगली तीन ट्वीट्स ऐसी ही हैं, एक लड़की के साथ हो रही निकृष्टतम यौन हिंसा को ‘मजा देने वाले’ वीडियोज में बदलते हुए ट्वीट्स]

अतानु भुइयाँ
जीएस रोड यौन हिंसा मामले में एक युवक गिरफ्तार. वह जीएमसीच का स्वीपर (सफाई कर्मचारी) है. [8.06 बजे रात]
(अगली कुछ ट्वीट्स भी ऐसी ही हैं. पहचान लिए गए यौन हिंसकों के बारे में सूचना देती हुई. हाँ ये संभावित बलात्कारी एक बार भी नहीं बताता कि मुख्य आरोपी उसके रिपोर्टर का करीबी दोस्त है और दोनों साथ में दारू पी रहे थे. खैर, यह संभावित बलात्कारी तो यह भी नहीं बताता कि उसके ‘कैमरामैन’ के अलावा वहाँ उसके चैनल का कोई और भी था.
हाँ वह यह बताना नहीं भूलता कि मुख्यधारा के चैनलों ने कैसे उसके फोन को असंपादित ‘फूटेज’ और विजुअल्स की मांग से भर दिया है. )

अतानु भुइयाँ
उनमे से कुछ ने मुझे पूछा कि मेरे रिपोर्टर और कैमरापर्सन ने भीड़ को उस लड़की के खिलाफ यौन हिंसा करने से रोका क्यों नहीं और घटना का वीडियो क्यों बनाया. [1.03 बजे रात, 13 जुलाई)

(हम भी यही जानना चाहते हैं अतानु भुइयाँ)

अतानु भुइयाँ
पर मैं अपनी टीम के समर्थन में हूँ क्योंकि (यौन हिंसा को रोकने का प्रयास करने की दशा में) भीड़ ने उनपर हमला कर के उनको शूटिंग करने से रोक दिया होता और उस दशा में सारे सबूत नष्ट हो जाते. [1.03 बजे रात, 13 जुलाई]
(अब भी ये संभावित बलात्कारी यह नहीं बता रहा है कि मुख्य अभियुक्त उसके रिपोर्टर का करीबी दोस्त है).

अतानु भुइयाँ
मेरे रिपोर्टर्स ने पुलिस को सूचित किया जिन्होंने बहुत देर हो जाने के पहले ही लड़की को बचा लिया.

(कितनी देर ‘बहुत देर’ होती हैं बलात्कारी भुइयाँ? और अगर पुलिस उससे भी ‘देर’ से आती तो? तब तुम्हारा चैनल ‘बलात्कार’ को भी ‘लाइव’ प्रसारित करता ताकि बाद में उसे ‘सबूत’ के बतौर इस्तेमाल किया जा सके? या फिर कम से कम उस टीआरपी के लिए जो इस बलात्कारी ने अपने ट्वीट में बता ही दी थी?)

अतानु भुइयाँ मेरा तर्क बहुत सरल है. किसी बम विस्फोट की सूरत में मेरे रिपोर्टर खून देने की वजह ‘विजुअल्स’ को ‘शूट’ करेंगे. [1:04 AM, 13 जुलाई]

(इसके बाद की कुछ ट्वीट्स इसी बात को अलग अलग अंदाज़ में कहते हुये भी मूल रूप से इसी लाइन पर हैं. महतवपूर्ण यह है कि इस ट्वीट के आने तक संभावित बलात्कारी अतानु भुइयाँ का झूठ बेपर्दा हो गया था. अब तक यह साफ़ हो गया था कि न तो उसका ‘कैमरापर्सन’ उस भीड़ के सामने अकेला था न लाचार. उसके साथ कम से कम एक मित्र (जो मुख्या अभियुक्त का भी बहुत करीबी दोस्त है) तो था ही. अखिल गोगोई को भूल जाएँ, आरोपों को भूल जाएँ, अब तक यह साफ़ हो चुका था कि अतानु का चमचा और रिपोर्टर उसी बार में मुख्या अभियुक्त के साथ शराब पी रहा था)

और इसके बाद ..
अतानु भुइयाँ यौन हिंसा का शिकार हुई लड़की झूठ बोल रही थी कि वह नाबालिग है. वह वस्तव में एक विवाहिता है और यहाँ तक की की उसकी एक बेटी भी है, जैसा कि एक लोकल चैनल ने बताया. [2.31 बजे रात, 14 जुलाई]

(मैं आश्चर्यचकित हूँ कि किसने इस बेहूदे को उसका मीडियाकार्ड दिया? सबसे पहले तो यह कि क्या हुआ अगर वह ‘नाबालिग’ नहीं थी और उसके ‘एक बेटी’ भी थी. क्या इससे उस पर हुई यौन हिंसा की पीड़ा किसी तरह से कम हो जाती है? वैसे, यह ‘यहाँ तक की’ उर्फ ‘EVEN’ यहाँ है क्यों?
दूसरे, क्या इस बेहूदे ने सच में तथ्यों को जांचा था? इस कमीने की वजह से एक निकृष्टतम किस्म की यौन हिंसा की शिकार हुई एक लड़की को अपनी तमाम पीड़ा को दरकिनार करके फिर से ‘सार्वजनिक’ होना पड़ा कि नहीं वह माँ नहीं है, एक नाबालिग है. पर सवाल यह है कि अगर वह एक विवाहिता माँ भी होती तो क्या उसके साथ हुई यौन हिंसा न्यायोचित थी?
वैसे एक सच यह भी है कि इस कमीने ने अब तक न झूठ बोलने के लिए माफी माँगी है न उस पीड़िता को इस झूठ की वजह से और प्रताड़ित करने के लिए. बीमार करने वाला है यह सब, नहीं?
हद यह कि इस 'संभावित बलात्कारी' अतानु भुइयाँ ने अब तक अपने झूठ के लिए माफी नहीं माँगी है.

इसके बाद और ट्वीट्स हैं, आरोप है, स्पष्टीकरण हैं. पर इनमे से कुछ भी कोई तथ्य नहीं बदलता. बात बिलकुल साफ़ है कि इस अनपढ़, रेसिस्ट और स्त्रीविरोधी भावी बलात्कारी संपादक की बीमार मानसिक संरचना उसकी ट्वीट्स से उजागर हो जाती हैं. मैं चाहों तो उन्हें एक बार फिर एक साथ रख सकता हूँ. पर फिर, इस संभावित बलात्कारी को न कभी कोई दिक्कत हुई न जवाब देना पड़ा. पर क्या इस बेहूदे को इसकी हरकतों के लिए जवाब नहीं देना चाहिए?

ख़याल रहे कि यह संभावित बलात्कारी इस यौन हिंसा से स्तब्ध देशवासियों के गुस्से के दबाव में कुछ करने को विवश पुलिस द्वारा इसके खबरियों के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने से बौखलाए अतानु भुइयां ने यौनहमले के पहले पीड़िता के नशे में होने के सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक कर दिए. क्यों भला? शायद इसलिए इस इस संभावित बलात्कारी को लगता है कि नशे में होने की वजह से इस लड़की के साथ ऐसा होना जायज था?

हाँ, इस यह पहली बार नहीं है कि इस संभावित बलात्कारी ने ऐसा किया है.

यह बेहूदा तो पहले भी अहोमिया औरतों के बारे में ऐसी बातें कर चुका है. उसने उन्हें पहले भी ‘वेश्या’ कहा है.वह भी सन 2011 में. तब तो यह ‘बलात्कारी’ यह कह के बच गया था कि इसकी ‘फेसबुक’ प्रोफाइल ‘हैक’ कर ली गयी थी. यकीन न हो तो हिन्दुस्तान टाइम्स की यह खबर देखें. पर यह तब भी झूठ था, अब भी झूठ है. सच यह है कि यह ‘संभावित बलात्कारी’ हमेशा से ऐसा ही था और ऐसा ही रहेगा. वह मिसोजाईनिस्ट’ है और रहेगा. और याद रखें कि जब भी ऐसे लोग बच निकलते हैं उनका अपने हमेशा बच निकलने पर यकीन बढ़ जाता है. यह भी कि जब भी ऐसे लोग बच निकलते हैं समाज की निराशा बढ़ती है और ऐसी घटनाएं नियति लगने लगती हैं.आखिर बलात्कारी किसी पेड़ पर नहीं लगते, किसी खेत में नहीं उपजते. भीड़ भरी जगहों पर पहले तो वे आपको शायद कमर पर छुएंगे, और प्रतिरोध नहीं हुआ तो फिर सीधे यौनांगों तक जा पंहुचेंगे. फिर भी बच गए तो वह करेंगे, जो दिव्यज्योति नियोग और इस अतानु भुइयां ने किया.

अब भी कोई शक बचा हो, तो यह वीडियो देखें. यह पुलिस के आ जाने के बाद का वीडियो है जहाँ गौरवज्योति नियोग पीड़िता से बार बार 'कैमरे' में चेहरा दिखाने की बात कर रहा है. निर्मम यौन हिंसा का शिकार हुई लड़की का चेहरा 'देश' को दिखाने की उसकी ख्वाहिश किस किस्म का वोयरिज्म है यह आप तय करें. मैं सिर्फ यह जानता हूँ कि न्यूजलाइव’ के इस ‘पूर्व’ एडिटर इन चीफ और वर्तमान 'मोलेस्टर इन चीफ' ऑफ रेप लाइव को ठीक वैसे ही सबक सिखाया जाना चाहिए जैसा इसके चैनल के मुताबिक़ भीड़ ने उस नाबालिग लड़की को सिखाया था.

(तस्वीर आसाम ट्रिब्यून से साभार)

Comments

  1. मामला अब शीशे की तरह साफ़ है .

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  2. sherm hai is desh jaha hum rahete hai is tarah ke sonch wale log hain, aur dusari taraf pratibha patil ek mahila rashtrapati jaisa bojh ek dikhawe ki tarah lagta hai.........!

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  3. तुम्हारी इस पोस्ट से यह बात एकदम साफ हो गयी है कि ये सब इस बेहूदे पत्रकार की सोची-समझी योजना के तहत हुआ है. इसको सज़ा मिलनी ही चाहिए.

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  4. बहुत से आरोपों के साथ और आधे घंटे तक वो सारी घटना शूट किये जाने से पहले ही शक हो रहा था . सबूत के लिए तो दो चार मिनट का शूट ही काफी था तब तक जितनो ने बदसुलूकी की वही पकडे जाते ज्यादा देर शूट कर तो और भी लोगों को उसमे शामिल होने को बढ़ावा दिया गया अब समझ आ रहा है की मुख्य आरोपी अभी तक पकड़ा क्यों नहीं गया | जो संपादक जी की सोच है वो यदा कदा यहाँ और लोगों में भी दिख ही रही है |

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  5. aesae patrkaar ki sajaa wahii ho jo baaki sab ko milae

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  6. ऐसे पत्रकार इस धर्म और पेशे को लज्जित करने वाले होते हें. और ऐसे लोगों को शह देने वाले भी दंड के भागीदार होने चाहिए.

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