यत्र नार्यस्तु पूज्यते वहाँ बलात्कार की सजा प्रमोशन है!


ख़बरें बड़ी सादा सी हैं. जैसे कि यह कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के कुछ माननीय न्यायाधीश रूचिका गिरहोत्रा नाम की एक उभरती बैडमिंटन खिलाड़ी का यौन उत्पीड़न कर उसको आत्महत्या के लिए मजबूर कर देने वाले एसपीएस राठौर नाम के सजायाफ्ता बलात्कारी के ‘कनविक्शन’ पर कोई निर्णय न लेते हुए भी उसकी पेंशन बहाल कर देते हैं. अब आप चाहें तो इन न्यायाधीशों को ‘माननीय’ कह भी लें.

ख़बरें बड़ी सादा सी हैं. जैसे कि यह कि हरियाणा की कांग्रेस सरकार का एक मंत्री एक युवा लड़की के सपनों ही नहीं बल्कि खुद उसका भी क़त्ल करके फरार हो जाता है. और फिर यह कि गीतिका शर्मा नाम की उस एयरहोस्टेस को आत्महत्या करने पर मजबूर करने कांग्रेसी मंत्री गोपाल कांडा का बचाव करने वाला वकील के टी एस तुलसी राष्ट्रीय मीडिया पर आकर ‘विधि यानी कि क़ानून के शासन’ पर प्रवचन देता है.

जैसे कि यह कि गुवाहाटी में बीस लोगों की भीड़ के साथ सड़क पर एक लड़की के साथ यौन हिंसा करवाने वाले अतानु भुइयाँ मजे में घूमता है और अरुणाचल प्रदेश में झील के किनारे अपनी ‘खूबसूरत’ तस्वीरें ट्विटर पर पोस्ट करता है. जैसे कि यह कि उसी यौन हिंसा का मुख्य खलनायक अमर ज्योति कालिता उर्फ बोंड ‘गिरफ्तारी’ के बाद भी अपनी फेसबुक प्रोफाइल डिलीट कर सकता है.

ख़बरें बड़ी सादा सी हैं. जैसे कि यह कि मातृशक्ति का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी उस राम जेठमलानी की सबसे बड़ी समर्थक होती है जो जेसिका लाल मुकदमे में मनु शर्मा जैसों का बचाव करता है. इतनी सादा सी खबर कि जैसे यही जेठमलानी फिर राष्ट्रपति चुनाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर राय देता है और राष्ट्रवादी उसकी सलाहों पर लेट लेट जाते हैं.

ख़बरें बड़ी सादा सी हैं. जैसे कि यह कि अपनी खुद की बेटी की ‘इज्जत हत्या’ उर्फ honour killing करने के लिए सजायाफ्ता अकाली नेता जागीर कौर न केवल जेल से पैरोल पाती हैं बल्कि उनको पैरोल पर ले जाने के लिए ‘लाल बत्ती’ वाली कार आती है.
ख़बरें बड़ी सादा सी हैं. जैसे कि यह कि जेसिका लाल की हत्या के अपराधी सजायाफ्ता मनु शर्मा को अपनी उस माँ की बीमारी की वजह से ‘पैरोल’ मिल जाता है जो माँ ‘ब्यूटी पार्लर्स’ का उद्घाटन करती घूम रही हो. खबरों का ही कमाल होगा कि इस पैरोल के लिए सिफारिश उस ऑल इण्डिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस से आती है जो सोनी सूरी जैसों पर माननीय(?) उच्चतम न्यायालय के ‘निर्देशों’ के बावजूद निर्णय नहीं ले पाता और सोनी सूरियों के यौनांगों में पत्थर भर देने वाले पुलिसिये वीरता’ का राष्ट्रीय पदक ले कर घूमते हैं.

ख़बरें बड़ी सादा सी हैं. जैसे कि यह इन मनु शर्माओं को पैरोल पे रिहा करने की सिफारिश दिल्ली की उस मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यालय से आती है जो तमाम सौम्या विश्वनाथन की हत्या के बाद ‘लड़कियों को शाम के बाद घर से न निकलने की सलाह’ देती है. ख़बरें बड़ी सादा सी हैं. जैसे मधुमिता शुक्ला नाम की उभरती कवियत्री की हत्या करने/करवाने वाले अमरमणि त्रिपाठी को विधायक/मंत्री बनाने की दौड में लगी पार्टियों के घोषणापत्रों में नारी हिंसा के खिलाफ बड़े बड़े वादे हैं.

ख़बरें बड़ी सादा सी हैं. पर ख़बरों का क्या है. चौबीस घंटे, सातों दिन यानी कि 24*7 चैनल चलाने हैं तो ख़बरें तो ढूंढनी ही पड़ती हैं न. और हर खबर के जवाब में एक श्लोक ढूँढा जा सकता है. ऐसे कि जैसे कि ऊपर लिखा हुआ सब कुछ झूठ है. सच यह है कि हम स्त्रियों का सबसे ज्यादा सम्मान करने वाले देश में रहते हैं. हामरे ग्रंथों में लिखा है – यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता.

बाकी सब झूठ है. गलत बयानी है. हमारी संस्कृति पर हमला है. 

Comments

  1. ये सादा खबरें ये बताती हैं कि हम अपनी औरतों की कितनी परवाह करते हैं.

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  2. हम बाद में आते हैं पढ़ लिया है आयेंगें यह गारंटी भी नहीं .....
    चलिए यह संक्षिप्ति -
    निंदनीय हैं मगर बस केवल यही वैधव्य विलाप नहीं रह गया है भारतीय संस्कृति में ...
    वह जो पाजिटिव है जो उदात्त है वह भी दिखना चाहिए .....

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  3. ये सादा खबरें ये बताती हैं कि हम अपनी औरतों की कितनी परवाह करते हैं.


    औरत ही तो समझते हैं इसीलिये तो ये खबरे बनती हैं , औरत , महज एक शरीर और कुछ नहीं . कभी एक कविता लिखी थी समर और मुक्ति , देखियेगा http://indianwomanhasarrived2.blogspot.in/2012/04/blog-post.html

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  4. @अरविन्द सर..
    न यह विधवा विलाप है न अरण्य रोदन. और अब तो भारतीय संस्कृति का उद्दात ढूँढने की कोई कोशिश सफल नहीं हुई है. गाँव के दखिन टोले से आती चीत्कारें घर के 'जनानखाने' से मिल एक अजब शोकगीत सा तो कुछ गा सकती हैं पर इससे ज्यादा कुछ नहीं.
    जिस देश के 42 प्रतिशत बच्चे सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ कुपोषित हों और उसी देश में अनाज सड़ता हो उसमे उदात्त अब ढूंढ भी न पाऊंगा.

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  5. समर
    ऐसी विमुखता ऐसा नैराश्य एक युवा के लिए तनिक भी अभीष्ट नहीं...
    आप की उम्र ही कितनी है अभी ...खेलने खाने के दिन हैं बच्चे -इन नग्न यथाथों के उत्खनन /उदघाटन को
    जीवन पड़ा है ......जानते हैं कबीर के तेज और बेलौस बयानी के बावजूद भी उनका यह पहलू मुझे हमेशा खटकता है
    हर जगह वितृष्णा और बिखराव पर उनकी नज़र -जैसे भारत धरा पर कहीं भी कुछ शुभ न हो -
    बहरहाल किसी रिश्ते के ही खातिर ही तो हम यह सब कह रहे हैं आपसे -बाकी आपकी मर्जी !

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  6. @अरविन्द सर,
    नैराश्य? विमुखता? वह तो कहीं नहीं है न मेरे जीवन में, न लेखन में. नैराश्य तो मुझे 'मूँदौ आँख कतहूँ कुछ नहीं की परंपरा' वाले मेरा भारत महान के जयकारों में दिखता है.
    ऐसे देखें कि एक देश है जिसके 42 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्वीकार के मुताबिक़ कुपोषित हैं, और इनके आधे से ज्यादा मौत की दहलीज पर खड़े हैं. उस देश में जिसमे अरबों का अनाज सड़ जाता है.
    एक देश है जिसकी २१ प्रतिशत आबादी आज भी अत्याचारों में जीती है.
    एक देश है जिसकी महिलायें सउदी अरब की महिलाओं से भी कम सुरक्षित हैं. (आप आदेश करें तो इस बात पर खुश हो लूं कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान से ज्यादा सुरक्षित हैं).
    एक देश है जिसका सत्ता पक्ष सिखों के नरसंहार का अपराधी है और विपक्ष मुस्लिमों के.
    अरविन्द सर, बदलाव लाने के लिए सत्य से सीधी मुठभेड़ जरूरी होती है, सत्य से साक्षात्कार करना पड़ता है. हम जैसे लोग कर रहे हैं और जहाँ भी हो सकता है अपना हस्तक्षेप दर्ज करते हैं, लड़ते हैं और 5000 साल की जड़ता, जातिवाद, स्त्रीविरोध और अल्पसंख्यक विरोध के बोझ तले बेशक जीतते कम हारते ज्यादा हैं पर कुछ हारें जीत से भी ज्यादा जरूरी होती हैं.
    यही हारें है जो आसन्न जीतों की पूर्वपीठिका बंटी हैं. ऐसे जैसे खैरलांजी. ऐसे जैसे जेसिका. ऐसे जैसे नरेगा. और अदना सिपाही के तौर पर ही सही मैं इनमे से नरेगा और खैरलांजी दोनों लड़ाइयों के केंद्र में खड़ा रहा हूँ.)

    तो सर, कुल मिला के कहना यही है कि यह सच स्वीकारना ही होगा कि यदि भारत धारा पर १० प्रतिशत का कोई शुभ हो भी रहा है तब वह शुभ नहीं अन्याय है, अत्याचार है.

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