मुबारक हो. मुफ्ती साहब ने इस्लाम बचा लिया.


इस्लाम एक बार फिर से खतरे में था. ठीक वैसे जैसे पिछले साल था. जाने क्या बीमारी है मुए मजहबों को, सब के सब खतरे में पड़ने की बीमारी पाले बैठे हैं. यहाँ इस्लाम खतरे में पड़ता रहता है और अमेरिका में हर चार साल में ईसाइयत. और हिन्दुइज्म का तो पूछिए ही मत. संघ कबीले का पूरा इतिहास ही हिन्दू धर्म पर मँडराते खतरे इजाद करने का इतिहास है.

फिर इन सारे मजहबों के खतरे भी जरा अजब किस्म के होते हैं. सब के सब अपनी औरतों से ही डरे रहते हैं. क्रिस्चियानिटी को सबसे ज्यादा डर अपने शरीर, यौनिकता और गर्भ पर अधिकार चाहने वाली औरतों से लगता है तो हिंदुत्व बार-पब जाने वाली, लड़कों के साथ अकेले घूमने वाली, अपनी मर्जी से डिस्को में नाचने वाली औरतों से दहशत में रहता है. अब दो ऐसे निकले तो इस्लाम कैसे पीछे रहे. इस्लाम बचाने वालों की आधी मेहनत तो सिर्फ और सिर्फ अपनी औरतों को बुरका पहना के उनको अपनी एक इरानी-फिलीस्तीनी दोस्त के हवाले से कहूँ तो चलता फिरता टेंट (walking tents) बना देने में खर्च हो जाती है. खैर, यहाँ रुक गए तो बात बड़ी लंबी हो जायेगी सो वापस मुद्दे पर लौटते हैं.

सो साहिबान, इस्लाम फिर से खतरे में था. ठीक वैसे ही जैसे पिछले साल था. बाकी पिछले साल जगह जयपुर थी और खतरा सलमान रुश्दी से था. वो तो भला हो धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस और अशोक गहलोत वाली उसकी राजस्थान सरकार का जो उन्होंने इस्लाम बचा लिया था. पर ये कतई न सोचियेगा कि इस्लाम बचाने पर कांग्रेस का कोई एकाधिकार है. रुश्दी के पहले जब इस्लाम तस्लीमा नसरीन से खतरे में था तो पश्चिम बंगाल में सीपीएम के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार इस्लाम बचाने को कूद पड़ी थी और इस बरस कामरेड जनता की धुर विरोधी ममता बनर्जी उर्फ दीदी ने इस्लाम बचाने के लिए सलमान रश्दी को पंहुचने के पहले ही वापस भेज दिया था.

खैर, इस बार खतरा बड़ा था. होना ही था, काश्मीर में जो था. हुआ यह था कि काश्मीर की कुछ लड़कियों ने अपना एक रॉक बैंड बना इस्लाम को गिटारों के निशाने पर ले लिया था. अहमक लड़कियाँ. बदतमीज. बैंड का नाम भी तो क्या रखा था. परगाश. काश्मीरी में बोलें तो सूरज की पहली किरण. सूरज की किरण बोले तो रोशनी. अब रोशनी से तुम्हारा क्या वास्ता बदतमीज लड़कियों. इन मजहब वालों ने तो तुम्हारी तकदीर में तो घरों की दीवारों के भीतर पसरा अँधेरा ही लिखन चाहा है, लिखा है.

और तुम अहमक लड़कियों.. तुम रॉक बैंड बनाने चली थी. गाने बजाने चली थीं? तुम निकल पड़ती तो काश्मीर की उस लड़ाई का क्या होता जिसके साथ हम जैसे सारी उम्र खड़े रहे हैं. कमजोर न पड़ जाती वो? आजादी के नारों के बीच गानों का क्या काम? और दोनों तरफ से आग बरसा रही बंदूकों के बीच तुम्हारे गिटार कितने भद्दे लगते कभी सोचा है? और फिर तुम्हे देख कुछ और लड़के लड़कियाँ भी ऐसे ही रास्तों पर चल पड़ते तो? बेड़ा गर्क हो जाता काश्मीर का, काश्मीरियत का.

शुक्र है कि श्रीनगर के मुख्य मुफ्ती बशीरूद्दीन साहब, अल्लाह उनका जवाल बुलंद करे, का कि उन्होंने तुमको ऐसे गलत और नापाक रास्ते पर जाने से रोक लिया. शुक्र है कि उन्होंने अपने फतवे से याद दिला दिया कि इस्लाम में तेज आवाज में संगीत गैर इस्लामिक है. तुमने देखा नहीं कि कैसे नूरजहाँ साहिबा, आबिदा परवीन, रेशमा, नुसरत साहब सब के सब कितनी धीमी आवाज में छुप छुपा के गाते हैं? कभी देखा है तुमने इन सब को खुलेआम गाते हुए?

तुम्हे क्या लगा था कि आज के इस्लाम वाले पुराने वालों की तरह हैं जिन्हें बिस्मिलाह खान के दशहरे में शहनाई बजाने से ऐतराज न था? जिनको मैहर बैंड वाले उस्ताद अलाउद्दीन खान का मैहर शक्तिपीठ की देवी के लिए गाना बजाना कभी नहीं खटका. ऐसे ही कमबख्तों ने इस्लाम को ऐसी जगह पंहुचा दिया है जहाँ तुम जैसी खराब लड़कियों के जेहन में ऐसे ख्याल न केवल आते हैं बल्कि तुम उन्हें पूरा करने भी निकल पड़ती हो. अब याद करो कि तुम्हारे ठीक बगल पाकिस्तान में इस्लाम बचाने वाले मस्जिदें उड़ा देते हैं, मुहर्रम के मातमी जुलूस में बम फोड़ देते हैं और खुदा का शुक्र करो कि तुम्हारा साबका ऐसे रहमदिल मौलवी से पड़ा है कि बस फतवा दे कर मान गए. या

फिर इसका भी कि वह तुम्हारे करीब वाले श्रीराम सेने वाले प्रमोद मुथालिक जैसे बेरहम नहीं थे नहीं तो कैमरे पर तुम्हारे कपड़े फाड़ तुम्हे समझाते कि ऐसी गुस्ताखी की असली सजा क्या होती है.

अब अच्छा हुआ कि तुमने गिटार खूंटी पर टांग तौबा कर ली है. अगली बार ऐसा सोचना भी मत. वरना याद है न कि रहमदिल मौलवी के जियालों ने तुम्हारा बलात्कार करने की भी धमकी दी है. समझ जाओ, इस्लाम बचाने की राह में किये गए बलात्कार बिलकुल जायज होते हैं, वैसे ही जैसे पाकिस्तानी फ़ौज ने बांग्लादेशी औरतों पर किये थे. जायज तो वह हिन्दू धर्म में भी होते हैं जैसे बजरंगियों ने गुजरात में किये थे.

सो आग लगाओ अपने गिटारों को अब और भूल जाओ सब वरना दर दर फिरना पड़ेगा तस्लीमा नसरीन की तरह, अयान हिरसी अली की तरह.

बाकी यह रास्ता चुनो तो हम तुम्हारे साथ हैं. गिनती में जितने भी कम हों, हमारे हौसलों की परवाज में तुम्हारे गिटार के पँख लग गए तो एक दिन यह जंग जीत ही लेंगे हम. आमीन.

Comments

  1. सुपर्ब, जबरदस्त,बातें तमाम .
    चलो बच ही गया इस्लाम .

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  2. ज़ोरदार तमाचा मारा है तुमने दोस्त कट्टरपंथियों के मुँह पर.

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  3. बेहतरीन! धर्म का काम है लोगों को बांटे रखना। वह अपना काम करता है। चलो हम अपना काम करें।

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  4. JNU mein aapki zaroorat Samar Sir

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  5. Hum kya bachayein...sab kuch bacha liya unhone...bachane ko kuch bacha hi nahin

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  6. शिखा जी- शुक्रिया.
    आराधना- अभी जोरदार कहाँ, बस तमाचा है फिरकापरस्ती के मुंह पर. जोरदार तो तब होगा सब सैम मिलें और लगायें, इन्हें, इनके हमजाद प्रवीन तोगड़िया को, अशोक सिंघल को. सबको.
    दिनेश राय द्विवेदी जी- बिलकुल. उन्हें बांटने देते हैं, हम जोड़ते चलते हैं.
    स्वराज-- नहीं भाई. जेनयू अपने कामरेड खुद ही पैदा कर लेता है. हमें तो दुनिया में बिखर जाने दो कि जहाँ कम है वहां आवाज लगायें.
    बिमल- सच बात है भाई. वे बड़े पेशेवर बचाऊ है. पामेला एन्डरसन जैसे लाइफगार्ड्स की तरह. बस उनका Bay Watch है.. इनका Islam Watch, Hindutva Watch, Christianity Watch वगैरह वगैरह.

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  7. Samar bhai ...

    aap agar sirf mufti ya molvi ko kahte jo galat bayan dete rahte hai to me kuch nahi likhta ...ye article bhi firka parasti ka favour kar raha hai....

    Aap ke is article me kafi etraaz ki baate hai jisme special kisi ek dharm ke liye direct bayan bazi...

    apne salman rushdi protest ki bat to likh di but MF Husain ke bare me kuch ni likha,

    aapne rock band kashmir ke bare me to likh diya but islamic rule nahi bataye.....

    apne irani philitistini friend k walking tent ki baat to kah di but Christian ki spiritual lady Nun ke walking tent ko kuch nahi kaha ...

    aisa kyun hai ki Admi full suit me ho to gentleman kahlata hai kyun nahi half paint aur baniyan me ?

    jabki female me shorts pahne to modrn kahi jati hai aur full suit pahne to bahan ji type ya purane zamane ki kahi jati hai..?

    PLEASE farq bataiye aisa kyun?

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  8. अच्छा तमाचा है लेकिन लगातार पड़ना चाहिए ।

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