पवित्र प्रश्नवीरों की पुण्य स्मृति में

स्वयं-प्रमाणित प्रश्नवीरों के छापामार शिविर में अफरातफरी का आलम है. असली प्रश्नवीरों के माथे पर छलक छलक पड़ रहा पसीना उनकी फर्जी और ज्यादातर स्त्रीवेशी फेसबुक प्रोफाइलों के पोंछे नहीं पूछ रहा. पवित्र प्रश्नवीर हनुमान संशय की रात में घिरे हुए थोड़ा कम पवित्र प्रश्नवीर अंगद से पूछ रहे हैं कि प्रश्नागार में विश्राम कर रही अन्य फर्जी प्रश्नात्माओं का क्या हुआ अंगद.. उन्हें मोर्चे पर क्यों नहीं भेज रहे?

छोटे और कम पवित्र प्रश्नवीर अंगद परेशान.. कैसे बताएं कि तात.. वे सब जाके लड़ के और धूलधूसरित होकर आये हैं और अब आपका फर्जी एजेंडा लागू करने को बिलकुल तैयार नहीं हैं. यहाँ तो लोगों को बुला बुला कर थक गए. कितना भी टैग करो हनुमानों के सिवा कोई आता ही नहीं अपने समर्थन को. सब शम्बूक असली लड़ाइयों में लगे हुए हैं, आपकी तरह फेसबुक पर गंध नहीं फैला रहे यह अंगद ने कहा नहीं पर हनुमान ने सुन जरुर लिया था. प्रश्नवीर अंगद के चेहरे पर घिरते शंका के बादल प्रश्नवीर हनुमान के चेहरे पर बरसने को हैं कि अब बरसे कि तब बरसे.

पर हमारे प्रश्नागार में यह सेंध लगी कैसे छोटे हनुमान? अब दलाली के हमारे सपनों का क्या होगा? सड़क किनारे हनुमान मूर्ति लगा कर मंदिर बना उसका महंथ बनने के हमारे सपनों का क्या होगा छोटे हनुमान? भारतीय मार्क्सवादियों को अमेरिका में नस्लभेद का जिम्मेदार बताने के लिए सबूत ढूँढने के लिए आरएसएस से मिले चवन्नी भर के ठेके का क्या होगा? मार्क्सवादियों पर हमले कर करके वाया नीतीश कुमार और मुलायम सिंह यादव ब्रांड सामाजिक न्याय भाजपा को बहुजन बेचने की रणनीति का क्या होगा?

नीतीश कुमार तो खैर कब से नरेन्द्र फेकू मोदी को गरिया गरिया के हत्यारी राम जन्मभूमि रथयात्रा वाले लालकृष्ण आडवाणी को सेकुलर बनाने में लगे हुए थे पर अभी तो मुलायम सिंह यादव ने भी अपनी समाजवादी टोपी आडवाणी के चरणों में फेंक दी थी, उन्हें सबसे ईमानदार नेता बता के. कहाँ तो आँखों में 2014 के बाद नए गठबंधन के सपने खिल रहे थे और कहाँ ऐसी पराजय? कैसी मुश्किल से तो हमने सांप्रदायिक दंगों तक को सवर्ण हिंदुओं और अशराफ मुसलमानों की जाति विमर्श को बहस से बाहर रखने की साजिश साबित करने की कोशिशें शुरू की थीं और अभी ऐसा हाहाकार? ये बेहूदे तो दंगों में मारे गए अशराफ मुसलमानों की लिस्ट हम पर दाग रहे हैं? बड़े हनुमान जी की आँखों में मेघ भर आये थे.

सब आपकी वजह से हुआ है तात. अंगद गरजे हैं. कहा था कि पढ़िए लिखिए, जनता के बीच उतरिये. सिर्फ एक हथियार से इन मार्क्सवादियों को परास्त न कर पायेंगे आप पर आप थे कि बस कोख में घुसे हुए थे. सिर्फ लोकेशन पर हमले किये जा रहे थे वह भी अपने चुनाव से बाहर पैदा होने की लोकेशन पर. आपने अपनी कोख नहीं चुनी थी तो उन्होंने भी नहीं चुनी थी न. और आपसे अलग वे जमीन पर लड़ रहे लोग थे आपकी तरह दिन रात फेसबुक पर जुगाली नहीं करते थे.

कहा था आपसे कि हथियार बढ़ाइये, कब तक एक ही शस्त्र चलाते रहेंगे पर आप थे कि न. और सेनापति भी कैसे कैसे चुने बैठे थे आप? फर्जी प्रोफ़ाइलें.. सब की सब. और उनमे से एकाध तो कल तक खुद को मार्क्सवादी कहती फिरती थीं. कहा था आपसे कि असली लोगों को मार्क्सवाद से बाहर निकालने के दावे करिये पर आप थे कि.. अब झेलिये. एक दाँव में चित्त. वह भी आपही वाला दाँव. आप तो उनकी जाति ढूढ़ रहे थे उन्होंने आपका होना ही संदिग्ध कर दिया. 

तुम भी अंगद? तुम भी? बड़े हनुमान बिलख ही पड़े थे. अब क्या करें छोटे? ठेकों का क्या होगा? छोटी दलाली के बड़े सपनों का क्या होगा? प्रश्न बढ़ाइये तात, प्रश्न बढ़ाइये. और यह हर बात में केवल जाति पूछने की बेवकूफी बंद करिये, अपनी तरफ भी हनुमान होते हैं.. अंगद कहते कहते रुक गए थे. +

पर अब क्या करें अंगद, यह तो बोलो. अभी तो नीतीश कुमार और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ लिखना भी शुरू कर दिया. उनसे भी सवाल पूछने शुरू कर दिए फिर भी कोई ‘लोड’ नहीं ले रहा. हनुमान बिचारे शून्य में देख रहे थे. वही तो तात.. केवल प्रश्नवीर बनने से काम नहीं चलेगा. वह भी फर्जी प्रोफाइलों के दम पर. फेसबुक से बाहर भी एक दुनिया है तात, वहां लोग असली पहचानों की ही इज्जत करते हैं. वह मैं कैसे कर पाऊंगा छोटे हनुमान? मैं तो खुद ही फर्जी हूँ. प्रश्नवीरों के शिविर में खामोशी छा गयी थी.

Comments

  1. ये लोग असल में , अगर काशीराम जी का ही फ्रेज़ उपयोग करूँ ज़रा सी रद्दोबदल के साथ तो 'भगवा आँगन के भगवा सरीसृप हैं'.

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  2. मजा आ गया. हनुमान के लड्डू तो कड़वे हो गए महाराज....

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