पथराती जमीनों पर आसमान छूती उम्मीदें


सबसे पहले एक स्पष्टीकरण. यह कि मुझे औरों की तरह मोदी से नहीं बल्कि मोदी के न आने से उम्मीदें थीं. मोदी के मुखौटे मुझे डराते हैं. मैं नहीं चाहता कि उस हिन्दुस्तान में जिसे मैं अपनी माँ और माशूक दोनों की तरह प्यार करता हूँ गुजरात फ़ैल जाय. न, मैं कांग्रेसी नहीं हूँ बल्कि किसी भी आम हिन्दुस्तानी की तरह कांग्रेस राज के घोटालों से मुझे नफरत है. पर फिर चुनना घोटालों और नरसंहारों में से ही हो तो?

खैर, अब हिंदुस्तान की उस चुनाव पद्धति की मेहरबानी से जिसमे 31 परसेंट वोट यानी 69 प्रतिशत नागरिकों की मुखालफत के बावजूद कोई पूरे बहुमत से आ सकता है मोदी साहब आ गए हैं तो मेरी उम्मीदों पर पानी डाला जाय. और बात की जाय बाकियों की उम्मीदों की. तो साहिबान, यह कमाल सरकार होने वाली है. ऐसी सरकार जिससे गैस के दाम बढाने को मरे जा रहे अम्बानी समूह और गैस का दाम बढ़ जाने से तबाह हो जाने वाले शहरी मध्यवर्ग को बराबर उम्मीदें हैं. ऐसी भी जिससे कौड़ियों के दाम जमीन अधिग्रहण कर १० लोगों को भी रोजगार न देने वाले अदानियों और जमीन को माँ मानने वाले किसानों को भी बराबर उम्मीदें हैं. ऐसी भी जिससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक और अनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच को स्वदेशी लाने की उतनी ही उम्मीद है जितनी पूंजीपतियों के संगठन फिक्की को बाजार में विदेशी पूँजी को खुला नाचने को छोड़ देने की. 

इन उम्मीदों के पूरा होने पर बस इतना कहूँ कि व्यवस्था कोई भी हो, बाजार और आम आदमी की एक दूसरे से टकराने वाली उम्मीदें एक साथ पूरी हो ही नहीं सकतीं, सो इस सरकार में भी नहीं होंगी. आप खुद ही सोचिये कि पूरा मीडिया खरीद फैलाए गए गुजरात मॉडल की हकीकत क्या है? 35 प्रतिशत कुपोषित बच्चे- जिन पर नरेंद्र मोदी का बयान यह है कि गुजराती लड़कियां फिगर-कांशस होने की वजह से दूध नहीं पीतीं और इसीलिए कुपोषित हो जाती हैं. बावजूद इस सच के कि यह आंकड़े ५ साल से कम उम्र के बच्चों के बारे में थे. 

बाकी आंकड़ों की भी बात करें तो बेरोजगारी ख़त्म कर लेने के दावे वाले गुजरात में 1500 पदों के लिए 13 लाख आवेदनों का आना सब कुछ साफ़ नहीं कर देता? यह भी कि यह मॉडल छोटे और कुटीर उद्योगों के इस कदर खिलाफ है कि मेहसाना में ऐसी 187 इकाइयों में से 140 बंद पड़ी हैं? फिर ‘विकसित’ राज्यों में तो किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं ही होना चाहिए न, सो अकेले 2013 में ही 135 किसानों की आत्महत्याएं इन उम्मीदों के बारे में कुछ तो कह ही रही हैं. बाकी यह यकीन जरुर रखिये कि उद्योगपतियों की मोदी से उम्मीदें बिलकुल पूरी होने वाली हैं. 

आखिर कोई अदानी ऐसे ही अपने निजी जेट विमान के साथ अरबों रुपये किसी नेता के चुनाव प्रचार पर थोड़े ही फूंक देता है. सरकारी टेंडर निकाल 7.5 और 5.5 रुपये में सौर बिजली खरीदते महाराष्ट्र और कर्नाटक के उलटे बिना टेंडर निकाले 13 रुपये में वही बिजली खरीद और अम्बानी को 1 रुपये में सैकड़ों एकड़ जमीन लीज पर दे मोदी साहब ने यह बार बार साबित भी किया है. अपनी चिंता मगर कुछ और है. उद्योगपतियों के सवाल पर तो कांग्रेस भी भाजपा से कोई अलग न थी, बस ये पूँजी के जरा बड़े चाकर हैं. अपना डर है कि अपने इतिहास के मुताबिक मोदी त्रिशूल लहराते जियालों की उम्मीदों पर भी खरे न उतर जाएँ. फिर गाँव, सड़कें, मोहल्ले हों कि शहर, असुरक्षित होते हैं तो कम ज्यादा सही, सबके लिए होते हैं.

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