[दैनिक जागरण में अपने पाक्षिक कॉलम 'परदेस से' में 26 जुलाई 2014 को प्रकाशित]
पहाड़ खोद उग आये उस
छोटे से गाँव को देख जो सुकून मिला था उसे शब्दों से बयान नहीं किया जा सकता. रारा
झील से गमगढ़ी के हाड़ तोड़ देने वाले घंटों लम्बे ट्रेक में यह पहली और आखिरी जगह थी
जहाँ थोड़ा सा आराम और ज्यादा सा खाना मिलना था. सो मिला भी, बस हुआ यह कि चारपाई
देख लम्बे हो गए मुझ को जगाये जाने के बाद. खाना भी तो क्या, भुने आलू, नमक मिर्च
और पनीली सी दाल. यहाँ सब लोग हमेशा यही खाते हैं, मैंने रेस्टोरेंट चलाने वाले
दंपत्ति से पूछा था. नहीं, हम लोग तो मांस भी खाते हैं न. बताया कि आप शाकाहारी
हैं इसलिए. उस दिन समझ आया था कि शाकाहार को नैतिक सिद्धांत मानने वाले कितने गलत
हैं. ऐसी जगहों में जहाँ कुछ पैदा ही न होता हो लोग खाएं भी तो क्या? उनकी पोषक
तत्वों की जरूरत कहाँ से पूरी होगी? उस पनीली दाल से जिससे प्रोटीन ढूंढना मुश्किल
ही नहीं नामुमकिन सा भी लगा था.
नजर ऊपर गयी तो दिखा
कि नूडल्स और शराब वहाँ भी मौजूद थी. यह नेपाल की खासियत है, उन सुदूर और निर्जन
स्थानों पर जहाँ ऑक्सीजन तक कम पड़ने लगे वहां भी शराब मिल ही जाती है. वह भी
स्थानीय नहीं बल्कि देशी विदेशी हर किस्म की शराब. यहाँ पीता कौन है, लाते कहाँ से
हैं पूछने पर दोनों बुजुर्ग मुस्कुरा भर दिए थे. पीते तो सब हैं, न पियें तो इतनी
सर्दी में जिन्दा कैसे रहेंगे? बाकी विदेशी आप जैसे ट्रेक वाले पर्यटकों के लिए
है, यहाँ वाले सस्ती ही पीते हैं. इतने पर्यटक आ जाते हैं यहाँ? हाँ, आते ही रहते
हैं, मार्च से अक्टूबर तक. उसके बाद? फिर हम लोग मेंढक हो जाते हैं, सो जाते हैं. इस
बार ठहाका समवेत था. गाँव के कुछ और लोग भी हमारी तरफ बढ़ आये थे.
इंडियन? इंडियन लोग
बहुत अच्छे होते हैं, सरकार बहुत ख़राब है, मेरे हाँ कहने पर जवाब आया था. क्यों?
क्योंकि विस्तारवादी होते हैं. हमारी सरकार पर दबाव डालते हैं. आप सबको यह सब पता
कैसे चलता है? अखबार आता है यहाँ? नहीं, पार्टी बुलेटिन आता है. मैं फिर चौंका था.
पार्टी बुलेटिन? हाँ हमलोग एमाले के हैं. एमाले माने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल
मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट एकीकृत. यह कामरेड बम थे. और पार्टियाँ भी हैं इस गाँव में?
है न, साझा जवाब आया था. ये एनसी (नेपाली कांग्रेस), वो माओवादी वैद्य और कुछ और
उँगलियों ने कुछ और इशारे भी किये थे. ये जो एनसी है न, आपके यहाँ का कांग्रेस है.
हर गाँव में एक आदमी तो मिल ही जाता है, पता नहीं कब तक लड़ाई की कीमत खाते रहेंगे.
पर आपके यहाँ इनकी खाली की जगह प्रगतिशील ताकतों ने भरी है, हमारे यहाँ दक्षिणपंथी
भर रहे हैं. मन उदास हो आया था. फिर याद आया कि नेपाल में और कुछ हो न हो,
राजनैतिक चेतना दुर्धर्ष है. काठमांडू में रेस्टोरेंट्स वर्कर्स यूनियन से लेकर
क्रांतिकारी हिंदूवादी पार्टी तक दोनों ध्रुव देख ही आया था.
अरे हाँ, शराब आती
कैसे है? मैंने फिर पूछा था. थोड़ी हवाई जहाज से, थोड़ी नीचे जुमला से. खच्चर पर भी
कंधे पर भी. लोग तो आते जाते रहते हैं न, कुछ भी जरूरत पड़ने पर. और बीमार हो गए
तो? तो गमगढ़ी में अस्पताल है, वहाँ चले जाते हैं. बिजली, पानी और सड़क जैसी
बुनियादी सुविधाओं तक से मरहूम होने के बावजूद यह लोग कितने खुश थे, संतुष्ट भी.
प्रकृति के साथ रहने का अपना अलग ही मजा है शायद. और हाँ, पढ़ते कहाँ हैं, फिर से
सवाल उभरा था. जानके राहत मिली थी कि गाँव में एक स्कूल था. युवराज भाई फिर से
कोहनी मार रहे थे, सफ़र अभी आधे से ज्यादा बाकी था और मेरी गति बहुत ख़राब. सबसे
विदा ले हम फिर चल पड़ने को थे ही कि एक ब्रिटिश युवती हमारे बीच आ पंहुची थी. छह
फुटा कद और उसपर टंगा चार फीट लम्बा और दो फीट चौड़ा रकसैक. मैं कुछ खा सकती हूँ,
हुजूर. पसीने से लथपथ चेहरे पर पानी छिडकते हुए उसने पूछा था. हुजूर नेपाल में
सम्मान प्रदर्शित करने का सामान्य शब्द ही नहीं, वार्तालाप का मूल आधार भी है.
किसी को फोन करिए, हेलो नहीं हुजूर सुनाई पड़ेगा. पर यहाँ इस अजनबी लड़की के मुंह से
यह सुनकर बहुत अच्छा लगा था. किसी को भी सम्मान देने की परम्परा हम कब सीख
पायेंगे? फंस जाने की स्तिथि में ऐसे ही किसी गाँव की किसी दुकान पर कुछ खरीदने के
लिए उतरते लोगों से ऐसे सम्मानजनक संबोधन की कल्पना की, हो ही नहीं सकी.
फिर उस लड़की से
बातें शुरू हो गयीं. यहाँ अकेले ट्रेकिंग करते हुए डर नहीं लगता. नहीं, नेपालियों
से अच्छे लोग कहीं नहीं होते, कोई खतरा नहीं है. इस बार फिर अपने वतन हिंदुस्तान
में लड़कियों के ऐसे अकेले ट्रेक पर निकल पड़ने की कल्पना करने की कोशिश की, वह भी
नहीं हुई.
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