[दैनिक जागरण में अपने पाक्षिक कॉलम 'परदेस से' में 22-11-2014 को प्रकाशित]
‘सारे साथी ठीक हैं?’ मैंने आरनेल से बहुत डरते
डरते पूछा था। 2012 में इसी ऑफिस में हुई
मुलाक़ात दो महीनों में दो मजदूर नेता साथियों के मार दिए जाने के साए में हुई थी। “नहीं, लगातार लड़ के हमने हत्याएँ रोक लीं हैं, पर यूनियन पर हमले जरुर बढे हैं". हवा में धुंए के
साथ बिखर गये ठहाके के साथ आरनेल का जवाब आया था।
हम फिलीपींस में थे. ठीक ठीक कहें तो मेट्रो
मनीला से दो घंटे दूर कैविते नाम के उस शहर में जहाँ फिलीपींस का सबसे बड़ा
एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन है. वह जगह जहाँ फिलीपींस के तमाम हिस्सों से चमक भरी
आँखें लेकर आते हैं. वह चमक जो गरीबी से, भूख से भाग निकलने की सपनीली उम्मीदों से
भरी होती है. फिर वे अपने सपनों के साथ यहाँ पसरी हजारों कंपनियों में बिखर जाते
हैं, उन कंपनियों में जहाँ चीजें बनती हैं और सपने क़त्ल होते हैं. उन कंपनियों में
जहाँ दिन भर के काम में शौचालय जाने का वक़्त भी दर्ज किया जाता है. उनमें जिनसे
निकलने का रास्ता उन २० फुट की सीलन भरी कोठरियों में जाता है जहाँ चार बंकर
बिस्तर होते हैं. बंकर- हाँ, अपना पर्दा खींच लेने पर वह बख्तरबंद ही हो जाते हैं.
ऐसा ही एक बिस्तर रिचेल ने दिखाया था. उस संक्रामक हँसी वाली रिचेल ने जिसकी वजह
बाहर नहीं, बस भीतर ही हो सकती है.
टैक्सी न लेने का फैसला कर लेने के बाद मैं
कैविते तक बहुत धक्के खाते हुए पंहुचा था. पसाई शहर के अपने होटल से एशिया की सबसे
बड़ी मॉल, मॉल ऑफ़ एशिया तक फिलीपींस की ईजाद जिपनी में, फिर एक बस और उसके बाद
मोटरसाइकिल से चिपका दी जाने वाली उस भयानक चीज में जिसे यहाँ ट्राईसाइकिल कहते
हैं और जो आपको बहुत डरा सकती है.
In the Dormitory |
‘आईटी कोर्स’ छोड़ क्यों
दिया?’ मैंने फिर पूछा था और रिचेल की संक्रामक हंसी बगल में बैठी एक लड़की पर रुक
गयी थी. ‘इन्होने पूरा किया था और ये भी यहीं हैं”. खैर, रिचेल अब एक इलेक्ट्रिकल
कंपनी में काम करती हैं और घर पैसे भेजने के बाद कुछ बचा भी रही हैं. मैंने पूछा
क्यों तो कमरे के सारे बंकर साझे ठहाके से हिलने लगे थे तो और रिचेल के चेहरे पर
हल्की से लाली तैर गयी थी. ‘शादी के लिए’- उनका शरमाया सा जवाब आया था. ‘शादी के
लिए’, मैं जरा चौंका था. मुझे नहीं लगता यहाँ भी दहेज़ चलता होंगा सो पूछ ही बैठा.
‘न न, मेरा बॉयफ्रेंड भी बचा रहा है, यहाँ शादी माँ बाप के पैसे से नहीं होती है’
कहती हुई रिचेल की आँखें और चमक आई थीं.
कमरे में मौजूद और तमाम
दोस्तों की तरह रिचेल भी वर्कर्स असिस्टेंस सेन्टर नाम की ट्रेड यूनियन की सदस्य
भी हैं. लगातार लड़ती हुई ऐसी सदस्य जिन्होंने २ साल पहले वाले हमलों का दौर देखा
है, साथी खोये हैं. वही साथी जिनके बारे में मैंने आर्नेल से पूछा था. ‘डर नहीं
लगता?’ मैंने फिर पूछा था. ‘लगता है पर अच्छी जिंदगी की कुछ कीमत तो चुकानी पड़ेगी.
हमें अब ओवरटाइम का पैसा मिलता है, लंचब्रेक भी बढ़ गया है और अभी अभी कम्पनी ने
कैजुअल कर्मचारियों के लिए भी सोशल सिक्यूरिटी की मांग मान ली है -इस बार जवाब रोज
मार्ता ने दिया था. बेशक, जिन्दा लोग लड़ते हैं. वे नाच सकते हैं, कमरतोड़ काम के १२
घंटे बाद भी आपसे मिलने पर खिलखिला सकते हैं, यूनियन की बैठकों के लिए ‘सन्डे
बेस्ट’ पहन सकते हैं. और हाँ, विदा लेने के पहले आपका फेसबुक आईडी ले आपको ऐड भी
कर सकते हैं.
दुनिया भर में मजदूरों की लड़ाइयाँ एक सी हैं, और सपने भी. पर वापसी में बस में बैठे हुए मेरे मन मयः सब नहीं बस रेचेल की संक्रामक हंसी थी.
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