चिड़ियों के गाँव में

[दैनिक जागरण में अपने पाक्षिक कॉलम 'परदेस से' 6 दिसंबर 2014 को प्रकाशित.]

जिंदगी भी एक हसीन इत्तेफाक ही है आखिर। यूँ कि निकलें आप मेट्रो मनीला के एक बहुत सुन्दर इलाके फ्रीडम आइलैंड के उन मछुआरे दोस्तों से मिलने जिनकी बेदखली खिलाफ लड़ाई में आप बरसों से साथ हैं. पर पँहुच जाएँ कहीं और माने लॉन्ग आइलैंड, जहाँ सीनेटर द्वारा समुद्र तट की सफाई और मैंग्रोव्स फिर से लगाने का कार्यक्रम आयोजित किया गया हो. और फिर आपके स्थानीय साथियों ने आपके आने की सूचना पहले से दे दी हो तो आपका स्वागत भी किया जाय और विशेष स्थान भी दिया जाय. उससे भी ज्यादा तब जब यह समझ आये कि यह ‘विशेष स्थान’ मूलतः कुछ विशेष नहीं है. तब जब आप देखें कि सीनेटर ‘सिंथिया विलार’ के साथ कोई सुरक्षा दस्ता नहीं है. तब जब आप देखें कि वे लोगों से और लोग उनसे बेझिझक मिल रहे हैं, तस्वीरों के साथ साथ सेल्फी भी ले रहे हैं.

खैर, लॉन्ग आइलैंड मनीला से कोई दो घंटे की दूरी पर स्थित लॉस पिनास - परान्क्वे क्रिटिकल हेबिटेट का हिस्सा है. करीब 175 वर्ग मीटर में फैले इस इलाके में तटीय लैगून है, जंगल हैं और फिर 36 हेक्टेयर में फैले मैन्ग्रोव्स भी. वो मैंग्रोव्स अरसे तक मनीला को समुद्री तूफानों से बचाते रहे है पर अब प्रदूषण से लेकर शहरों में जमीन की हवस की वजह से खुद ही संकट में है. वास्तव में मेनग्रोव का शाब्दिक मतलब होता है सदबहार. यह उष्णकटिबंधीय समुद्र तटीय इलाकों में वहाँ लगता है, जहाँ उच्च ज्वार के कारण पानी भर जाता है और इलाका दलदली हो जाता है. वास्तव में ये पेड मिलकर जमीन में ऊपर की तरफ निकली हुई जड़ों का समूह बनाते है. पर्यावरण के संकट और जलवायु परिवर्तन के कारण ये पेड़ सारी दुनिया में संकट में हैं. अब भी नहीं समझ आया तो कि मैन्ग्रोव क्या हैं तो अमिताव घोष के उपन्यासों में ही नहीं, असल जिंदगी में भी बेहद सुन्दर दिखने वाले पश्चिम बंगाल के सुन्दर वन याद करिए. जाने कब से जाने की ख्वाहिश थी वहाँ पर फिर जिंदगी के पहले मैंग्रोव्स वतन से तीन समन्दर पार यहीं देखने थे तो यही सही.

आप भी लगाइए न. मैंग्रोव्स देखने का मौका मिलने की ख़ुशी में सूफी हाल में चले गए अपने दिमाग को डेजी लॉन्ग आइलैंड वापस ले आयीं थीं. डेजी मतलब डिफेंड जॉब फिलीपींस की वह साथी जिनकी बेपनाह हिम्मत और लगन से अगले कुछ दिन तक हमारा साक्षात्कार होता रहना था. वे जो शहरी गरीबों के पुनर्वास के लिए बसाई गयी बस्ती में जाने के बीच बहुत सहजता से बताने वाली थीं कि उनका कोई ‘बॉयफ्रेंड’ नहीं है क्योंकि लड़के उनके काम ही नहीं उनके आत्मविश्वास से भी डरते हैं झिझकते हैं. डेजी, जिनकी इस बात पर दूसरी साथी लेया को खिलखिला पड़ना था और मुझे और सचिन भाई को हिंदुस्तान याद आना था. लेया की उस दिन की हंसी बहुत उदास हंसी थी. हमें हिंदुस्तान याद आना बहुत उदास याद आना था. दुनिया भर की लड़ाइयाँ ही नहीं, दुनिया भर के पूर्वाग्रह और भेदभाव भी इतने एक से क्यों हैं भला?

खैर, तीन पेड़ लगाने के बाद हम सब समुद्र तट की सफाई करने चल पड़े थे. फायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ, एम्बुलेंस, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी- किसी आकस्मिक दुर्घटना की दशा में सुरक्षा की तैयारी पूरी थी. वहां मौजूद दस्ताने पहने, मास्क मिला वो हमने लगाया नहीं और जुट गए. और कोई रास्ता भी नहीं था, अपने खांटी भारतीय स्वच्छता अभियान के उलट उस सफाई में कैमरों और झाडुओं के साथ साथ गन्दगी भी असली थी, ‘ताज़ी मंगाई हुई’ नहीं . रेत में गहरे दबी हुई प्लास्टिक आर कांच की बोतलें, सिगरेट के पैकेट, एक गेंद, कोयलाती सी लकड़ियाँ, और न जाने क्या क्या. आजतक समझ नहीं पाया कि समुद्र से कोई रिश्ता न रखने वाली कुछ चीजें वहाँ तक पंहुच कैसे जाती हैं आखिर. कौन लोग ले जाते हैं और क्यों? न ले जाएँ तो दुनिया थोड़ी और साफ़ न हो जाए.

खैर, यूं सफाई में श्रमदान का कोई नियत समय नहीं था पर थोड़ी ही देर में समझ आ गया था कि कोई कम से कम एक बैग भरे बिना कोई वापस नहीं जा रहा था. दूर सीनेटर साहिबा भी पूरी मुस्तैदी से सफाई में लगी हुईं थीं. सो हम पाँचों ने भी पांच बैग सफाई कर ही डाली, पूरे दिल से. वक़्त वापस निकलने का हो आया था. ‘आपको पता है कि ये ‘रामसार’ साइट है’- डेजी ने अचानक पूछने जैसा बताया था. आँखों में उभर आया कौतूहल देख फिर खुद ही बोल पड़ी थी- ‘रामसार जगह माने अन्तराष्ट्रीय महत्व के वेटलैंड्स को संरक्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधि. और पता है यहाँ 80 किस्म की चिड़िया देखी जाती रही हैं जिसमे तीन लुप्तप्राय हैं. ‘वे हमेशा आती रहेंगी’ मैं बेसाख्ता बोल पड़ा था. ‘आमीन’- उनका जवाब भी उतना ही बेसाख्ता था.

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