ज्वालामुखी की गोद में

[दैनिक जागरण में अपने कॉलम 'परदेस से' में 20-12-2014 को प्रकाशित]

टगाताई शहर से नीचे उतरती वादी की सड़क पर कार बहुत झटके से रुकी थी. फिर ड्राईवर ने इशारा किया था- ‘वो देख रहे हैं, एक अकेले पहाड़ सा? वही है ताल ज्वालामुखी.’ हमने ध्यान से देखा था उस खूबसूरत फरेबी को. गहरे नीले पानी के बीच खड़ा एक हरा पहाड़, क्रेटर न दिखे तो कोई कह ही न सके कि ये ज्वालमुखी है. वह भी जीवित, आग उगलता. पर फिर, यहाँ टगाताई रिज से दिख रहा वह ज्वालामुखी फिलिपीन्स के सबसे सुन्दर नजारों में एक माना ही नहीं जाता, है भी.

हाँ, नदी पहाड़ जंगल नाले तो सब देखते हैं, हमने जीता हुआ ज्वालामुखी देखा है। उससे निकलती लावे की नदी से खेलते हुए हवाओं में बिखरी सल्फर को भर सांस फेफड़ों में जिया है. अब याद आता है कि सब कुछ कितना सपनीला सा था. हमारे सामने वो ज्वालामुखी था जो बस बचपन की किताबों में होता था. याद है कि किताबों में लिखा हर हर्फ़ सच मानने वाले हम बस ज्वालामुखी की बातों पर ठहर जाते थे, शक और यकीन के बीच की किसी जगह से उसकी कल्पना करते रहते थे कि ऐसा भी हो सकता है भला?

और लीजिये, फ्रीडम आइलैंड ही नहीं, और भी तमाम जगहों से विस्थापित साथियों से मिलने उनके लिए बनायी गयी पुनर्वास बसावटों में पंहुचे और बात बात में जिक्र आया कि ताल ज्वालामुखी वहाँ से बस 50 किलोमीटर के फासले पर है. सचिन भाई, मैं, स्थानीय साथी लेया और डेजी- हममें से किसी ने कभी कोई ज्वालामुखी नहीं देखा था सो आँखों में कौतूहल के साथ सवाल भी था- सुरक्षित होगा? अगर हमारे पंहुचते पंहुचते जोर से फट पड़ा तो? फिर भारतीय बुद्धू बक्सों पर मिली सीख याद आ गई- डर के आगे जीत है और बैठकों के बाद अपना कारवां ज्वालमुखी की तरफ निकल पड़ा.

रास्ते में गूगल चाची ने जो बताया वह डराने भर को काफी था. ल्यूज़न द्वीप पर स्थित ताल ज्वालामुखी अपने इतिहास में कुल 33 विस्फोटों के साथ फिलीपींस का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है. मतलब यह कि 40000 वर्ग किलोमीटर में फैले दुनिया के 90 प्रतिशत भूकम्पों के घर ‘पैसिफिक रिंग ऑफ़ फायर’ उर्फ़ आग के गोले के नाम से जाने उस इलाके के सबसे बदमाश ज्वालामुखियों में से एक जिसने बहुतेरी जानें ली हैं.

बतांगास प्रांत के तालिसाय और सैन निकोलस शहरों के बीच ताल झील के बीच एक द्वीप के शिखर पर स्थित इस ज्वालामुखी तक पंहुचते पंहुचते शाम उतर आई थी. हमें तालिसाय से एक स्टीमर किराए पर लेना था और फिर द्वीप तक पंहुचना था जहाँ बसे हुए लोग घोड़ों से हमें ऊपर ले जाते. ‘ज्वालामुखी के बगल बसे हुए लोग’- इस ख्याल ने फिर सिहराया था. यहाँ बसना प्रतिबंधित है, पर फिर जिन्दा रहने की जद्दोजहद ऐसे प्रतिबंधों से कहाँ डरती है सो अतिउपजाऊ वोल्कैनिक राख और आने वाले घुमंतुओं को आजिवाका का आधार बना उस द्वीप पर ही एक पूरा समुदाय बस गया है.

उन घोड़ों के साथ हमें ऊपर ले जाने ले लिए हम सबके साथ अब एक एक बन्दा और जुड़ गया था. मेरे साथ सुलेमान था. 93 प्रतिशत ईसाई आबादी वाले देश में ज्वालामुखी के द्वीप पर सुलेमान? पूछा तो शक सही निकला, उसका परिवार दशक भर पहले मुस्लिम बहुसंख्यक प्रांत मिंदानाओ की हिंसा और बेरोजगारी से भागकर यहाँ आ पंहुचा था और फिर यहीं का होकर रह गया था. खैर, दूरी कम थी सो आधे घंटे में ही हम ज्वालामुखी के करीब आ पंहुचे थे. बहता हुआ लावा हमारे सामने थे और दूर क्रेटर से निकल रहा धुंआ. हवाओं में घुली सल्फर अपने होने का ही नहीं बल्कि उससे पैदा हो सकने वाले खतरों का हलफिया बयान थी. हम चारों स्तब्ध खड़े थे, लगभग अविश्वास में कि हम सच में एक ज्वालामुखी के पास नहीं बल्कि उस पर खड़े हैं. ‘इस लावे में एक पाँव डाल के देखूं, बहुत गरम तो नहीं होगा’ मैंने डरते डरते पूछा था. जवाब में चारों बच्चे खिलखिला उठे थे, ‘डालिए डालिए, अभी बारिश हुई है न, कुछ नहीं होगा. जूते भी तो पहने हैं आपने, बस पाँव जल्दी जल्दी उठाते रहिएगा’. मैं और सचिन भाई दोनों लावे की उस बहुत धीमे मगर बहती नदी में पाँव डाल दिए थे.

उतरने का वक़्त हो आया था, सो बतौर यादगार लावे का एक टुकड़ा टिश्यू पेपर में सहेज कर रख लिया था मैंने, बाद में सिर्फ यह समझने के लिए कि लावा पिघलता ही नहीं, बूरा भी हो जाता है.

‘डर नहीं लगता सुलेमान’ मैंने उतरते हुए पूछा था. ‘लगता तो है पर ज्वालामुखी फटने पर वक़्त देता है, भाग जायेंगे झील के उस पार’- उसका जवाब था. ‘न भाग पाए तो’- मैंने फिर पूछा था. ‘तो क्या हुआ, मिंदानाओ में तो कोई भागने का वाट भी नहीं देता’- कहकर वो खिलखिला के हंस पड़ा था. हमारे स्टीमर तक पंहुचने तक उदास रात उतर आई थी.

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