कुमारी का चुनाव्

[दैनिक जागरण में अपने कॉलम परदेस से में 9-05-2015 को प्रकाशित]

कुमारी को देख चुके होने के बाद उनके बारे में बहुत कुछ जानने की इच्छा हो आई थी. कैसे चुनी जाती हैं कुमारी? और कब? क्या उसके चुनाव के लिए कोई न्यूनतम उम्र निर्धारित है? सवालों के जवाब कुमारी या उनकी संस्था से नहीं ही मिलने थे, वे ऐसी तमाम परम्पराओं की तरह सब कुछ बहुत गोपनीय रखते हैं.

खैर, काठमांडू की गलियों में भटकते हुए, दोस्तों के साथ कॉफ़ी पीते हुए, थमेल में गयी रात मटरगश्ती करते हुए- शायद ही कोई वक़्त ऐसा हो जब यह सारे सवाल मेरे जेहन में न रहे हों. हाँ, 60 और 70 के के हिप्पी संस्कृति के इकलौते बचे अखाड़े थमेल में भी- बाकी दोस्त बियर के साथ कहकहों का चखना खा रहे हैं और मैं ग्लास हाथ में पकड़े कुमारी देवी के बारे में सोच रहा हूँ. क्या कर रही होगी वह बच्ची इस वक़्त? अगर उसका अपनी उम्र की और बच्चियों की तरह कार्टून देखने का मन हुआ तो क्या उसे इजाजत मिलेगी? पर ये सवाल तो बहुत बाद का है- कुमारी घर में टेलीविज़न होगा क्या? क्या कुमारी भी कॉमिक्स पढ़ती होगी?


कैसा लगता होगा उसे जब और बच्चों को स्कूल जाते देखती होगी? क्या उसके भी दिल में कभी वैसी वर्दी पहनने का ख्याल आता होगा? या फिर वह सच में त्योहारों के अलावा अपनी चारदीवारी से बाहर न निकल पाने पर भी सच में खुश होगी? ये सोचते हुए एक बार लगा था कि कहीं मुझे बचपन में देवता बना कर ऐसे कैद कर दिया गया होता तो, और इस ख्याल भर से रीढ़ की हड्डी में उतर गयी सिहरन अब भी याद है. खैर, सबसे बड़ा सवाल मगर वही था- एक नेवाड़ी शाक्य बौद्ध लड़की हिन्दू देवी कैसे बन जाती है? उसे हिन्दू धर्म की लड़कियों में से ही क्यों नहीं चुना जाता? अरे हाँ, सिद्धार्थ, जो बाद में गौतम बुद्ध हुए इसी समुदाय से थे.
सवाल थे तो जवाब मिलना शुरू हो जाना लाजमी था. सबसे पहले यह कि यूं तो कोई निश्चित उम्र नहीं है पर इतनी बड़ी ही चुनी जाती है कि बातें समझ भी सके और कर भी सके. चुनने की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब तत्कालीन कुमारी का मासिक धर्म शुरू हो जाय और कैसी भी चोट से उसको खून निकल आये. याद आया था अपने बुजुर्गों का कहना कि खंडित प्रतिमाओं की पूजा नहीं होती. पर यहाँ तो मसला किसी मूर्ति का नहीं बल्कि एक जीती जागती लड़की का था.

खैर, किसी भी वजह से शरीर से निकले खून के साथ देवी भी निकल जाती हैं और फिर शुरू होती है नयी देवी की खोज. उसके लिए 32 परिपूर्णताओं का होना पहली शर्त है- उदाहरण लेने हों तो बरगद जैसा शरीर सौष्ठव, हिरन जैसी जांघें वगैरह. चेहरे पर फिर हंसी बिखर आई थी- देवी को तो सुन्दरता के अपने प्रतिमानों से माफ़ कर देते इंसानों. खैर, इन परिपूर्णताओं का होना ही देवी होना नहीं होता, यह तो बस इसके बाद एक बहुत ही भयानक परीक्षा की शुरुआत होती है. इस परीक्षा में 108 भैंसों के  कटे सरों के भयानक शक्लों वाले मुखौटे लगाए नाचते और डरावनी आवाजें निकालते लोगों के साथ बिलकुल भी डरे बिना एक पूरी रात गुजारना शामिल होता है. याद आया था कि मेरी जानकारी में सबसे कम उम्र में चुनी गयी कुमारी बस 3 साल की थी और बदन में सिहरन फिर से उतर आई थी. 3 साल की बच्ची के साथ ऐसी परीक्षा?

अगर वह बच्ची यह सब झेल गयी तो फिर उसे उस अंतिम परीक्षा के लिए ले जाया जाता है जिसमे उसको तमाम कुमारियों के कपड़े दिए जाते हैं और उसे ठीक पहले वाली कुमारी के कपड़े चुनने होते हैं. पहले यह जानना दिलचस्प लगा था क्योंकि कपड़े चुनने की यह प्रक्रिया दलाई लामा के चुनाव में भी अपनाई जाती है. पर फिर याद आया कि अंततः यह बच्ची नेवाड़ी बौद्ध समुदाय से ही तो आती है.

खैर, यह परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली तो बच्ची देवी मान ली जाती है और फिर उसके अतीत को मिटा कर उसके शरीर में तलेजू यानी देवी का प्रवेश करवाने की प्रक्रिया शुरू होती है. वह प्रक्रिया जिसमें उसे नहलाने के बाद देवी के वस्त्र पहनाये जाते हैं और मंदिर से सामने वाले कुमारी घर तक सफ़ेद चादर बिछायी जाती है. इसी सफ़ेद चादर पर चलकर कुमारी अपने कुमारी घर पंहुचती है जिसके बाद वह आधिकारिक देवी हो जाती है. यह चलना, मगर कुमारी का देवी बने रहने तक अपने पांवों पर अंतिम बार चलना होता है. और यह वक़्त 8, 10 या 12 साल, कुछ भी हो सकता. पर कुमारी को नेवाड़ी शाक्य बौद्ध समुदाय से ही क्यों होना होता है इस सवाल का जवाब अब भी नहीं मिला था.  

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