यह न्याय नहीं, बदला मांगती भीड़ है.

16 दिसंबर सामूहिक बलात्कार मामले में नाबालिग सजायाफ्ता की सजा पूरी करने के बाद रिहाई पर तमाम मित्रों की प्रतिक्रियायों से गुजरना एक भयावह अनुभव है- उतना ही भयावह जितना शार्ली एब्डो के बाद कुछ मित्रों के साथ हुआ अनुभव था. विस्तार से लिखूंगा पर अभी उसका खून मांग रहे दोस्तों, खासतौर पर महिला मित्रों से कुछ सवाल- 

किसने बताया आपको कि वह सभी अपराधियों में सबसे बर्बर था? राम सिंह ने? बाकी सह-अभियुक्तों ने? पुलिस ने? फिर इंडिया'ज डॉटर में तो एक और सह-अभियुक्त ने यह भी बताया था कि वह पूरे टाइम बस चलाता रहा, बलात्कार में शामिल ही नहीं था? मान लें उसकी भी यह बात? सिर्फ मर्जी से तथ्य चुनेंगे हम? बाकी तथ्य यह है कि दिल्ली पुलिस ने किशोर न्यायालय में एक बार भी नहीं कहा कि वह सबसे बर्बर था? 

मगर अगर वह सबसे बर्बर था भी तो? किसने बनाया एक नाबालिग को इतना बर्बर? और बनाया तो इसके पहले किसी अपराध में शामिल होने का कोई जिक्र क्यों नहीं मिला? बाकी के चार बालिग़ अपराधी उस नाबालिग को साथ लेकर क्यों घूम रहे थे? उस नाबालिग को स्कूल जाने की जगह राम सिंह जैसे पुराने अपराधी (किरण बेदी के शो तक में आ चुका था वह वैसे) के साथ काम करने पर क्यों मजबूर होना पड़ा? सबसे बर्बर वह हो भी- तो उससे ज्यादा बर्बर हम और आप हैं, वह समाज है जो नाबालिगों को पढ़ाई की जगह काम करने पर ही मजबूर नहीं करता, ऐसे लोगों के साथ काम करने पर मजबूर करता है. 

बाकी किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक 2015 पारित करवा कर संज्ञेय अपराधों में लिप्त 16 साल तक के किशोरों को वयस्कों के लिए लागू होने वाली कानूनी प्रक्रिया में लाकर अपराध रोकने का ख्याल कितना अहमकाना है यह जानने के लिए अपराध और सजा के अंतर्संबंध नहीं बस आंकड़े देख लेना काफी होगा. 16 दिसंबर सामूहिक बलात्कार के बाद उपजे देशव्यापी गुस्से को देखते हुए जस्टिस जे एस वर्मा कमेटी की सिफारिशों को ख़ारिज कर बलात्कार के लिए मृत्यु दंड का प्राविधान करने के बाद बलात्कार बढे हैं, कम नहीं हुए. खुद नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़े देखें तो भारत में 2013 में बलात्कार के कुल 33,707 मामले दर्ज हुए थे.  सजा बढ़ने के साथ कम होने की जगह 2014 में यह संख्या बढ़कर 36,735 हो गयी है. 


और ये आउटरेज इसी मामले में क्यों? थोंग्जम मनोरमा के लिए गुस्सा कहाँ गायब हो जाता है. मनोरमा कौन? नहीं पता न? मनोरमा इसी देश की एक और बेटी जिसको आसाम राइफल्स के वीर जवानों ने आधी रात को घर से उठाकर बुरी तरह से यातना देकर मार दिया था- गुप्तांगों तक में गोली मारी थी. और हाँ, यह मैं नहीं, मणिपुर सरकार की बैठाई न्यायिक जांच समिति ने कहा है. मणिपुर दूर है? अच्छा- छत्तीसगढ़ वाली सोनी सूरी तो याद होंगी न? उच्चतम न्यायालय ने माना था कि इस देश के वीर पुलिसियों ने उनके गुप्तांगों में पत्थर भर दिए था- राष्ट्रपति का वीरता पदक भी मिला था उन्हें इसके लिए. सोनी सूरी के बारे में भी नहीं पता? 


अभी इस वक़्त दिल्ली में सामूहिक बलात्कार के बाद मौत से लड़ रही सात साल की बच्ची के बारे में तो जानते होंगे? नहीं? एम्स में है. पता लगाइए कि तमाम नारीवादियों से लेकर हम आप तक उसके लिए आक्रोशित क्यों नहीं हैं? 

क्या है कि इस देश में पिछले बरस 36,745 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे- ये बस दर्ज होने वाली संख्या है- पता है न ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं होते! यह भी कि इस देश की अदालतों में 2014 तक ही बलात्कार के 1,25,433 मामले लंबित थे (2015 वाले जोड़ लें तो 1,62,000 के ऊपर हुए) और इनमें से 90,000 पिछले सालों से लंबित थे. हम आप कुछ नहीं कर पाते ऐसे हजारों मामलों में इसका यह मतलब नहीं कि सारा गुस्सा एक आदमी पर निकाल दें. 

वह करेंगे तो बिलकुल उन्हीं जैसे हो जायेंगे- उन्होंने एक स्त्री के शरीर पर अपनी सारी कुंठा, सारी हिंसा निकाल दी थी. आप एक सजायाफ्ता पर निकाल देंगे पर होगी वही- कुंठा और हिंसा.

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