नव-देशभक्तों के नाम एक जेएनयू वाले का खुला ख़त

जेएनयू की एक बहुत पुरानी शाम से
उतने भी प्यारे नहीं देशभक्तों, भारत माता के वीरों (मुँह खुलते ही स्त्रियों को गालियाँ देने वालों को सपूत तो खैर भारत माँ भी नहीं मानेंगी)

कई दिन से आपका पराक्रम, जेएनयू पर आपकी उबल उबल पड़ रही देशभक्ति देखकर अभिभूत हूँ. मुझे अच्छा लगता अगर इतना न सही थोड़ा सा ही पराक्रम आप सूट-साड़ी-प्रेमपत्र-चौंकाऊ सालगिरह बधाई मने सबकुछ कर लेने के बावजूद पठानकोट पर हमला कर देने वालों पर भी दिखाते. आपने नहीं दिखायी, कोई बात नहीं. वैसे भी भारत माता के दुश्मनों पर आपके पराक्रम दिखाने का कोई सबूत मिलता भी कहाँ है. मैंने बहुत ढूँढ़ा पर 1925 में बने आरएसएस का कोई नेता नहीं मिला जो अंग्रेजों से लड़ कर जेल गया हो. आपके केशवराम बलिराम हेडगेवार से शुरू कर कर बरास्ते माधवराव सदाशिवराव गोलवरकर संघ के निचले स्तर पर काम कर रहे स्वयंसेवकों तक, कोई भी नहीं.

पर वह जाने ही दीजिये, आपके खेमे का कोई गया होता तो प्रधानमन्त्री मोदी जी को दुनिया भर में महात्मा गाँधी का नाम क्यों जपना पड़ता. फिर उन्हें देश में भी जीवन भर कांग्रेसी रहे, संघ को प्रतिबंधित करने वाले सरदार पटेल या कांग्रेस छोड़ने के बाद आजाद हिन्द फौज के पहले रेडिओ प्रसारण में महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को हथियाने की कोशिश क्यों करनी पड़ती. पर यह क्या- बात हमारी, जेएनयू वालों की करनी थी और मैं आपकी करने लगा. सो वापस आते हैं जी.

हाँ, मैं जेएनयू वाला हूँ. जेएनयू आने से पहले भी वह बनना शुरू हो गया था जो अब हूँ, पर फिर बनाया जेएनयू ने ही. क्या है कि भारत का मतलब सिर्फ उत्तर भारत और उसकी फिल्मों में खास अंदाज में अन्ना और अईअईयो करते कुछ जरा सांवले चेहरे और एक डैनी डेंगजोप्पा ही नहीं- यह बात इलाहाबाद तक में समझ नहीं आई थी. क्या है कि भारत का असली मायनों में भारत होना जिया जेएनयू में ही- जब अपनी क्लास में सबसे अच्छी दोस्त कन्नड़ थी तो सबसे बदमाश मणिपुरी.

जेएनयू में रहते हुए ही मैं भारतीय ही नहीं, खुद भारत बना. पर आप वाला नहीं जो  इधर काश्मीर उधर मणिपुर नागालैंड से निकलते ही खत्म हो कुछ कुछ और बन जाता है- उदाहरण के लिए मराठी मानूस और फिर उत्तर प्रदेश और बिहार वालों पर टूट पड़ता है. काश आपकी राष्ट्रवादी आँखों में तब भी जरा सा खून उतरता, आप उन टूट पड़ने वालों के साथ सरकारें न बनाने लगते. जी मैं वो भारत हूँ, महाराष्ट्र में पिटता भैया भारत. वो भी जो मध्य प्रदेश से रेलगाड़ियों के जनरल डिब्बों में भूसे की तरह लद के आसाम से पंजाब तक के खेतों में, फैक्ट्रियों में हाड़तोड़ काम करने जाता है और वहाँ भी पिटता है- फिर उन्हीं के हाथों जिनके साथ आप सरकारें बनाते हैं, जिनके खिलाफ आपकी आँखों में खून नहीं उतरता.

मैं जनाब बस्तर वाला भी भारत हूँ- वह भारत जिस पर आपके पहले वाले, जरा कम राष्ट्रवादी भी गोलियाँ बरसाते थे- आप भी बरसाते हैं. बिना यह सोचे कि वह गोलियाँ आपके खिलाफ हथियार उठाये लड़ रहे माओवादियों को ही नहीं निर्दोष आदिवासियों को भी लगती हैं और आप का राष्ट्रवाद उबल नहीं पड़ता, उन्हें संपार्श्विक क्षति बोले तो ‘कोलैटरल डैमेज’ मान लेता है. बात समझ नहीं आई? कैसे आएगी, आप राष्ट्रभक्त ठहरे. उसी  बस्तर  के बीजापुर में सार्केगुडा मुठभेड़ याद है? वही जिसमें सीआरपीएफ के जवानों ने 17 आदिवासियों को मार गिराया था और तब के गृहमंत्री चिदंबरम बोले थे कि अगर कोई निर्दोष मारा गया है तो वह बहुत शर्मिंदा- डीपली सॉरी- हैं. उनकी ही पार्टी के आदिवासी विधायक कवासी लखमा ने बताया था वह दरअसल निर्दोष थे. जी, मैं उन आदिवासियों का भारत हूँ.

उस मीना खालको नाम की 15 साल की आदिवासी लड़की का भारत जिसकी छत्तीसगढ़ पुलिस के जवानों ने बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी. न न लपक के मुझे देशद्रोही न घोषित कर दीजियेगा, गलती कर बैठेंगे आप. यह बात मैं नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त न्यायिक आयोग ने कही है और 25 पुलिसवालों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई है. मैं, जनाब, उस मीना खलको का भारत हूँ.

मैं जनाब, थंगजाम मनोरमा का भी भारत हूँ. कुछ याद आया नाम से? जी, उस मणिपुर की बेटी जो आपके भारत के खयालों में तब तक नहीं आता जब तक किसी बंगलुरु किसी दिल्ली में उत्तर पूर्व के छात्रों पर नस्ली हमले न हुए हों या फिर खुद उत्तर पूर्व में किसी बागी समूह ने फ़ौज या अर्धसैनिक बालों पर हमला न कर दिया हो. जी जनाब, मुझे पता कि ऐसे हालात में आपका वही ‘भारत का अभिन्न अंग’ राग बज उठता है जो बाकी वक़्त बस काश्मीर के नाम लिखा हुआ है. मनोरमा उसी मणिपुर की बेटी थी जिसके बच्चों को बाकी वक़्त में आप चिंकी कहते हैं. वह बेटी जिसे आसाम राइफल्स के वीर जवान उठा ले गए थे और फिर उसकी निर्मम बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी थी. जी, इस बार उन्होंने गुप्तांगों तक में गोली मारी थी ताकि हत्या का मिले न मिले, बलात्कार का सबूत तक न मिले. और फिर से यह मैं नहीं, सरकार द्वारा गठित न्यायिक आयोग ही कह रहा है.

मैं जनाब काश्मीर का भी भारत हूँ. उस काश्मीर का जिसमें शोपियां है, जिसमें माछिल है. कुछ याद आया जनाब? वही माछिल जिसमें पदकों और इनामों के लिए फौज के छह जवानों ने तीन निर्दोष काश्मीरी नागरिकों को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया था और ऐसे तमाम मामलों से अलग पिछले साल उनमें से छह हत्यारों को उम्रकैद की सजा भी मिली है. फिर से कोलैटरल डैमेज तो नहीं कहेंगे न इसे? कहियेगा भी मत- दहशतगर्दों के, आतंकवादियों के बेगुनाहों के मारने और नागरिकों की जान की रक्षा करने के लिए भारत के संविधान की शपथ लेने वालों में फर्क है जनाब. जी, मैं माछिल वाला भी भारत हूँ.

घबराइयेगा मत देशभक्तों. आपको मौका दूँगा. वह भी जेएनयू वाले ऐसे बड़े तर्कों के साथ नहीं जिनमें से आधे आपकी भक्ति से कुंद हो गयी बुद्धि के पार चले जायें. क्या है जनाब कि मैं पूछ सकता हूँ कि तब आपकी देशभक्ति छुट्टी पर क्यों चली जाती है जब देश का कृषि मंत्री संसद में किसानों की आत्महत्या का कारण प्रेम प्रसंग और नपुंसकता को बता देता है. पूछ तो मैं ये भी सकता हूँ कि तब आपको क्या हो जाता है जब भाजपा का एक सांसद गोपाल शेट्टी कहता है कि किसान फैशन में आत्महत्या कर रहे हैं. या यह कि सुप्रीम कोर्ट की सामजिक न्याय बेंच ने सरकार जी के महाधिवक्ता को बाल कुपोषण पर बहुत बुरी तरह क्यों झिड़का था- ये बच्चे इस देश के बच्चे नहीं हैं क्या.

मैं आपसे आपकी ज़मीन पर बात करूँगा. जी मैं अफज़ल गुरु नहीं बनना चाहता. ठीक वैसे जैसे उसका बेटा ग़ालिब खुद अफज़ल नहीं डॉक्टर बनना चाहता है. मेरे देखे जेएनयू में अफज़ल गुरु बनने के नारे कभी नहीं लगे, अभी आपके दिखाए वीडिओ में भी जहाँ वे नारें हैं वहाँ अँधेरा है चेहरे नहीं हैं और जहाँ चेहरे हैं वहाँ वह नारे नहीं हैं. अफज़ल मेरा शहीद नहीं है, हो ही नहीं सकता. हाँ, वह देश की न्याय व्यवस्था के अन्याय का शिकार जरुर है- वह शिकार जिसे सिर्फ ‘परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर’ इसलिए फाँसी दे दी गयी क्योंकि देश की न्यायपालिका को लगा कि देश की अंतरात्मा सिर्फ इसी से संतुष्ट होगी.

जनाब, मैंने उस फाँसी का विरोध किया है, करूँगा. ठीक वैसे जैसे मैंने गुजरात सरकार द्वारा नरोदा पाटिया दंगों की सजायाफ्ता मुजरिम माया कोडनानी को सिर्फ उम्र कैद मिलने पर फाँसी मांगने का निर्णय लेने पर विरोध किया था. किसी सभ्य समाज में फाँसी नाम की सजा हो ही नहीं सकती, बर्बर से बर्बर अपराधी की जीत होगी अगर हम उसके जितना बर्बर हो जाएँ.

पर मेरी बात छोड़िये जनाब. आपके देश की सरकार चला रही भाजपा की काश्मीर वाली सरकार की साथी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी तो बाकायदा अफज़ल गुरु को शहीद मानती है, उसके अवशेष वापस काश्मीर लाने की बात करती है. तब आपके राष्ट्रवाद को क्या हो जाता है जनाब, वह आँखों में खून बन के तब क्यों नहीं उतरता? या तब, जब एक काश्मीरी अलगाववादी नेता सज्जाद लोन को राष्ट्रवाद की एजेंसी चलाने वाली भाजपा पीडीपी के विरोध के बावजूद अपने कोटे से मंत्री बनाती है? बड़ा अवसरवादी राष्ट्रवाद है आप का तो. तब भी कहाँ उतरा था जब काश्मीर में सरकार बनाते ही आपके गठबंधन के मुख्यमंत्री ने शांतिपूर्ण चुनाव के लिए पाकिस्तान और हुर्रियत कांफ्रेस को शुक्रिया कहा था. फिर मसर्रत आलम नाम के पाकिस्तान समर्थक को रिहा किया था, फिर वगैरह वगैरह.

तो जनाब, अपने जमीर से पूछियेगा अगर बचा हो जरा बहुत. क्या है कि मैं जो भारत हूँ उस झूठे चाय वाले की आँख में चुभता हुआ भारत हूँ. ठीक वैसे जैसे मेरा दोस्त, मेरा भाई, मेरा कामरेड अवतार सिंह पाश उस चालाक पायलट की आँखों में चुभने वाला भारत था. उस पाश की बात उधार लूँ तो इस चाय वाले का कोई खानदानी भारत हो तो मुझे उस भारत से ख़ारिज कर दीजिये. मेरे भारत में सब कुछ ठीक नहीं है और यह कहने की हिम्मत होना उसे ठीक करने की शुरुआत है, देशद्रोह नहीं.

मेरे भारत में आज भी गरीबों के, मजलूमों के साथ अन्याय होता है और मैं उसके खिलाफ बुलंद आवाज़ में बोलूँगा. मेरे भारत की फौज उत्तराखंड में, काश्मीर में बाढ़ में जान लगा लोगों को बचाती फौज है और उसमें चंद अपराधी भी हैं- वे जो माछिल करते हैं, मणिपुर करते हैं. मेरे भारत की इज्जत, उसकी फौज का सम्मान इन अपराधियों के खिलाफ लड़ने से बढ़ता है जनाब, चंद अपराधियों की करतूतों पर पर्दा डाल एक पूरी संस्था को संदिग्ध बना देने से नहीं.

डरिये मत जनाब- अभी आपको खुद पर हमले का एक मौका और दूँगा. वह भी किसी सोली सोराबजी या फाली नारीमन जैसे बड़े वकील का नाम लेकर नहीं कि सिर्फ नारे लगाना देशद्रोह नहीं है भले ही वह भारत मुर्दाबाद जैसा नारा ही क्यों न हो. मैं सुप्रीम कोर्ट के बिनायक सेन को जमानत देने वाले फैसले का जिक्र भी नहीं करूँगा जिसमें उसने साफ़ किया था कि किसी प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन की सदस्यता तक देशद्रोह नहीं है बशर्ते आप खुद हिंसा न भड़का रहे हों या उसमें शामिल न हों.

क्या है कि अपना मामला साफ़ है जनाब. मुझे भी अपने भारत के खिलाफ लगते नारे बुरे तो लगते हैं लेकिन मैं जानता हूँ कि न वो आपके भारत की तरह कमजोर भारत है न इस्लामिक स्टेट वालों के इस्लाम जैसा इस्लाम कि 10 बेवकूफों के नारों से खतरे में पड़ जायेगा. भारत आपके लिए जमीन का एक टुकड़ा भर होगा, मेरे लिए वो जगह है जिसमें मेरे पुरखों की राख शामिल है, वह राख जिसका एक हिस्सा अभी बहुत गर्म है, जिसकी तपिश अभी भी हाथों को झुलसाती है.

सो मेरे भारत में इन लोगों से भी बातचीत की जगह है जनाब. उनसे यह पूछने की, समझने भी कि क्यों भाई- इस जमीन में तुम्हारे भी पुरखे हैं, इसको तोड़ने क्यों चले हो? मेरे भारत में इतनी जगह है कि फिर अगर सच में उनके साथ कोई अन्याय हुआ हो तो उनसे अपने भारत की तरफ माफ़ी मांग सकूँ और उनसे लड़ने की जगह अपने भारत में, उसकी अदालतों में उनके लिए न्याय के लिए लड़ सकूँ. त्रिशूल घोंप के बात मनवाई जा सकती है जनाब, प्रेम नहीं करवाया जा सकता फिर चाहे इन्सान से हो या देश से. क्या है कि इस देश में तमाम लोग ब्रिटेन से प्रेम की कसमें खाया करते थे. उसमें आपके खेमे वाले सावरकर भी थे, पर सच में करते थे क्या?  

सो आप नारों से खतरे में पड़ जाने वाले भारत में जियें, भले ही फिर से इस बेईमानी के साथ कि उन नारों में हिन्दू महासभा वालों के भारत विरोधी नारों का जिक्र न हो, मैं अपने भारत में जियूँगा. अपनी अना के साथ, ऊंचे सर के साथ- आप कोशिश कर लें, हमले कर लें, मुझे डरा न पाएंगे. हाँ, मार जरुर सकते हैं- क्या है कि अंग्रेजों वाले भारत ने तो भगत सिंहों को अदालतों में ले जाकर मार दिया, आप तो अब भी बाहर ही खड़े हैं. बाकी हम दोनों का भारत किसको याद करता है, किसको गद्दार मानता है वह बताने की जरुरत तो नहीं है जनाब.

हाँ, आपका भारत अलग सही- मैं आपकी तरह तंगदिल नहीं तो एक सलाह जरुर दूँगा- आपके वाले भारत के आका आपको दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, स्त्रियों, छात्रों का खून बहाने की इजाजत ही नहीं देंगे, मदद भी करेंगे. पर हो सके तो कभी उनसे रोजगार, अच्छी जिंदगी, स्कूल गए बच्चों की सुरक्षा की गारंटी जैसी वे चीजें मांग के देखिएगा जिनका वादा करके वे सत्ता में आये थे. समझ आ जाएगा कि तब आप उनकी संगीनों के, वर्दियों के किस तरफ दिखेंगे. तब तक आप बेशक एक सांस में भारत माता की जय और माँ बहनों को गाली देते रहें, बावजूद इसके कि कोई माँ किसी माँ को किसी बेटी को दी गयी गाली से खुश नहीं होती.

आपका नहीं
समर 

Comments

  1. शानदार लिखा हैं जनाब आपने...!!
    बिल्कुल सही व सार्थक चिंतन:)
    मेरे भाई ने भी jnu से ba रसियन लैंग्वेज में किया हैं और हमें प्राउड हैं उस पर....jun किसी भी मायने में गलत नहीं हैं इन दिनों यह सब क्या हो रहा हैं खुदा जाने:-(
    मैं sarika choudhary नाम से फेसबुक पर भी हूँ मन करे तो जरुर ऐड कीजिए बाकि आपके ब्लॉग का लिंक मिल गया हैं अब पढ़ते रहेंगें आप लिखते शानदार हैं☺😊

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  2. Mne Umar khalid ka news channel pr debate dekha h usne puri tarah se Afjal ki faansi o galat kaha h. Is this the sign of a nationalist. Totally pained by what happens in JNU @SHUTDOWNJNU

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  3. बढ़िया लेख बधाई हो बंधु

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  4. बधाई हो बंधू एक बहुत ही अच्छा और सच्चा लेख

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  6. बहुत उम्दा समय जी

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  7. बहुत ही उम्दा समर जी

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  8. Behtareen.
    Sivaay ek para ke jisme supreme court ke judgement ki ek line (to satisfy collective conscience..) ko selectively utha kar judicial killing saabit karna hai.
    Innocent toh wo kahi se nahi tha,capital punishment dene ke peeche rajniti zyada hai,ye bhi sahi hai.
    Vaampanth ko ativaad se bachaiye,appeal kho dega aise ye,revolution ke chakkar me sab kuch dhata bata dena bhi theek nahi.logo ko sath laane ke liye left ko bhi introspect karna banta hai.

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  9. Kaafi pehle ka likha hua hai..
    http://roughregister.blogspot.in/2013/02/afzal-guru-hanged.html

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  10. I support your letter..

    Mene bhi Afzal pr kuch likha tha kaafi pehle.. dekhiyega..

    http://roughregister.blogspot.in/2013/02/afzal-guru-hanged.html

    Aapka

    Ashutosh

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  11. ऐसा लगातार लिखना जरुरी है...शानदार भाई..

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  12. समर निःशब्द हैं हम! क्या कहें, सब तो कह दिया आपने। बस एक बात कहेंगे- लिखो यूँ ही लिखते रहो जगाते रहो, फिर किसी के आँख की किरकिरी बनो, तो बनते रहो।

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  13. समर निःशब्द हैं हम! क्या कहें, सब तो कह दिया आपने। बस एक बात कहेंगे- लिखो यूँ ही लिखते रहो जगाते रहो, फिर किसी के आँख की किरकिरी बनो, तो बनते रहो।

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