अर्नब गोस्वामी, सुधीर चौधरी लें कन्हैया पर हमले की जिम्मेदारी, हमलावर को दें इनाम



बिलकुल भी प्यारे नहीं सुधीर चौधरी और अर्नब गोस्वामी,  
खुश तो बहुत होंगे आज आप दोनों। बढ़िया वजह जो है आपके पास. अब राष्ट्रवाद के आपके वाले अतिहिंसक और दकियानूसी विकृत स्वरूप के स्वयंभू झंडाबरदार रोज रोज तो आपके आह्वान पर लोगों को मारने काटने निकल नहीं पड़ते। न न, मैं जानता हूँ कि आप दोनों ने कभी जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर शारीरिक हमले का आह्वान नहीं किया। आप तो हमेशा उससे जरा कम पर ही रुक गए. करते भी कैसे, आप दोनों शातिर लोग ठहरे (तारीफ़ ही समझियेगा), आपको ज्यादातर पता रहता है कि भीड़ को गैरकानूनी हिंसा के लिए, असहमतों की हत्या तक कर देने के लिए भड़काते हुए भी खुद कैसे कानून के दायरे में रहा जाय! ज्यादातर इसलिए कहा क्योंकि सुधीर चौधरी कई बार चूक जाते हैं, खुद वसूली के चक्कर में तिहाड़ तक रह आये हैं. 

आप दोनों बहुत खुश होंगे कि आपकी बात अब और दूर पहुँचने लगी है, इस सेना उस सेना, इस दल उस दल में संगठित गुंडों तक सिमटी नहीं है. आप खुश होंगे कि अब आपकी बात तन्हा हिंसक भी सुनने लगे हैं. ऐसा न होता तो कोई विजय चौधरी गाजियाबाद से चल कर 'देशद्रोही' कन्हैया को सबक सिखाने जेएनयू तक क्यों चला आता. अब आपको इससे क्या मतलब कि कन्हैया 'देशद्रोही' नहीं है; काफी सांसद और विधायकों वाली, संविधान में आस्था रखने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया का सदस्य होते हुए हो भी नहीं सकता। आपको इससे भी क्या ही मतलब कि उसे अदालत से 'देशद्रोह' जैसे संगीन मामले में इसलिए जमानत मिली है क्योंकि दिल्ली पुलिस के पास उसके खिलाफ भारतविरोधी नारेबाजी करने का कोई सबूत नहीं था. और जब आपको इससे मतलब नहीं है तो इससे क्या होगा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार कहा कि देशविरोधी नारे लगाना भी देशद्रोह नहीं है अगर उसके साथ हिंसा करने या भड़काने का मामला न जुड़ा हो! 

जी, आपसे यह जानने की उम्मीद भी बेमानी होगी पर हम ठहरे आदतन भले आदमी तो बताये देते हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने दसियों मामलों में यही फैसला सुनाया है- कुछ के नाम गिन लीजिये जिनमें सर्वोच्च न्यायालय ने बार बार आईपीसी 124 ए के मामलों में यही अवस्थिति ली है तो प्रमुख होंगे- केदारनाथ सिंह विरुद्ध बिहार मामले में 20 जनवरी 1962 का निर्णय (1962 AIR 955), बलवंत सिंह विरुद्ध पंजाब मामले में 1 मार्च 1995 (Appeal (crl.) 266 of 1985) का निर्णय, अरूप भुइंया विरुद्ध आसाम में 3 फ़रवरी 2011 का निर्णय (CRIMINAL APPEAL NO(s). 889 OF 2007) और श्री इंद्रा दास विरुद्ध आसाम में 10 फ़रवरी 2011 का निर्णय ((Criminal Appeal NO.1383 OF 2007). 

इनमें से बलवंत सिंह विरुद्ध पंजाब मामला इसलिए बहुत महत्वपूर्ण बन जाता है क्योंकि उसमें भी दो लोगों पर भारत के खिलाफ खालिस्तान समर्थक नारेबाजी करने का आरोप था. उस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय देखें- (अनुवाद मेरा) 

“हमें लगता है कि दो लोगों द्वारा नारे लगाना जिनका जनता पर न कोई असर पड़ा न प्रतिक्रिया हुई न सेक्शन 124 ए का आरोप आमंत्रित करता है न सेक्शन 153 के तहत. इन अभियोगों को लागू करने के लिए सरकारी कर्मचारी वादियों द्वारा और स्पष्ट हरकतों की मांग करता है. वादियों को गिरफ्तार करने में पुलिस अधिकारियों ने अपरिपक्वता दिखाई है और उनकी यह कार्यवाही कानून और व्यवस्था को बिगाड़ सकती थी, खासतौर पर इसलिए कि श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या वाले उस दिन माहौल पहले से ही बेहद तनावपूर्ण था. ऐसी परिस्थितियों में अति संवेदनशीलता दिखाना प्रतिकूल प्रभाव पैदा करना और संकट को आमंत्रित करना है. दो अकेले लोगों द्वारा कुछ नारे लगाना, बिना उससे ज्यादा कुछ किये हुए, भारत सरकार को कोई खतरा नहीं पैदा करता क्योंकि स्थापित विधि में यह अलग समुदायों, धर्मों या अन्य समूहों के बीच शत्रुता या घृणा की भावनाएं नहीं पैदा कर सकता.” 

मैं जानता हूँ, अर्नब गोस्वामी और सुधीर चौधरी, कि खतरे में पड़ने के आदती राष्ट्रवाद के आप जैसे स्वयंभू ठेकेदारों को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। आप तो पुलिस, अभियोजन और न्यायाधीश तीनों का साकार रूप ठहरे। और आपने फर्जी वीडियो, दमदार फेफड़े और बेवकूफ भक्तों के सहारे कन्हैया को दोषसिद्ध करार दिया तो करार दिया! अब दोषी करार दिया तो सजा भी देनी थी, सो हिंसक, हत्यारी उन्मादित भीड़ भी छोड़ दी, कन्हैया के पीछे, और साथियों के पीछे। 

कायदे से अब आपको आजके हमले के जिम्मेदारी लेते हुए हमलावर को ईनाम भी देना चाहिए, आपका राष्ट्रवाद संतुष्ट होगा। आपको उस हमलावर को अपने न्यूज़ऑवर (चाहे जितने घंटे का ऑवर होता हो आपका) में मुख्य अतिथि के बतौर बुलाना भी चाहिए। और हाँ, आपको अब तक इस्लामिस्ट आतंकियों के पश्चिमी देशों में सिमटे रहे अकेले भेड़िये हमलों को हिन्दू फासीवादी हत्यारों के रूप में हिन्दुस्तान ले आने के लिए खुद को बधाई भी देनी चाहिए। ऐसी बड़ी उपलब्धि हासिल करना हंसी खेल थोड़े है! 

लगे हाथ आपको अपनी प्यारे मोदी सरकार से पुलिस, अभियोजन और न्यायपालिका को भंग करके उनके अधिकार आपके द्वारा उन्मादित किये गए स्वयंभू राष्ट्रवादियों को दे देने की मांग भी करनी चाहिए। वैसे उसमें खतरा है, वे केवल आपसे असहमतों पर नहीं टिके रहेंगे, वे आपके लिए भी लौटेंगे और बहुत जल्द लौटेंगे। क्या है कि जिनकी भावनाओं को आहत होने की आदत पड़ जाय वे वजहें खोज लेते हैं. और हम असहमतों को पाकिस्तान भेज देने के बाद उन्हें आहत करने के लिए आप ही बचेंगे न. फिर वजहें तो आप भी बहुत देते हैं, यौनिक अल्पसंख्यकों- माने समलैंगिकता से लेकर बीफ तक पर अपने स्टैंड से. अभी बस उनका ध्यान हम पर है, तब तक मजा ले लीजिये फिर तो वे आपकी भी फ्रिज में क्या है ये तफ्तीश करने आएंगे ही. मेरी शुभकामना है कि तब आप खुद को उनसे बचा सकें। 

यह होने तक आजके हमले पर खुश होने के साथ उसके असफल हो जाने पर थोड़ा दुखी भी हो लीजिये वैसे, और अगले, बेहतर हमले की तैयारी करिये। मुझे लगता है आपको मुश्किल नहीं होगी। जेएनयू वालों के आदतन जवाब- हिंसक हमलावर को पीट पीट के लुगदी बना देने की जगह उसे प्यार से बैठाकर पानी पिलाने से और हमलावरों की हिम्मत भी बढ़ी होगी। आह्वान करके तो देखिये। हाँ आज वाले को प्राइम टाइम में बुलाकर इनाम देना न भूलियेगा, आपकी टीआरपी बढ़ेगी। 

आपका बिलकुल भी नहीं संघद्रोही 
अविनाश पाण्डेय समर 

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