झेलम चाट सम्मेलन- जेएनयू के नाना प्रकार के चाटों पर विचार

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फिर यक्ष ने पूछा- हे युधिष्ठिर, अब आप जेएनयू देश के झेलम प्रांत में कुख्यात चाटों के नाना प्रकार का विषद वर्णन करें। 

यह सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि हे तात, यह तारा जैसे बच्चे अपने ही अनुज हैं, जो बता रहे हैं हम बड़े और कड़े बुजुर्गों से ही सीखा है. फिर भी आप का आदेश हैं तो मैं इसे आपको आसान भाषा में चाट कर बताता हूँ- हे तात- जैसे भारत नाना भाषाओँ में एक सी लम्पटई कर सकने वाली विविधिता में एकता वाला देश है, उसी प्रकार जेएनयू नाना प्रकार के चाटों से भरा एक सम्प्रभु समाज है. वैसे तो जेएनयू के सभी प्रकार के चाटों की गणना कर सकना उसी तरह असंभव है जैसे मनुष्य के सर के बाल गिनना, बशर्ते वह मनुष्य अनुपम खेर न हो, परन्तु मैं फिर भी आपको कुछ प्रमुख किस्म के चाटों के बारे में आपको बताता हूँ- 

हे तात, चाटों की सबसे निकृष्ट कोटि है शकलन चाटों की- इस प्रजाति के चाटों का दर्शन मात्र मनुष्य को चाट कर रख देता है. आप कुछ भी कहें, बात कोई भी हो रही हो, यह चाट ऐसी आतुर और कातर निगाहों से शून्य में देखते रहते हैं कि आप इनके मुंह खोले बिना चट कर सफ़ेद हो जाते हैं. इन्हे विजुअल चाट के नाम से भी जाना जाता है. 

अकलन चाट निम्न कोटि के मगर इनसे थोड़ा बेहतर चाट होते हैं. आप इनसे कोई भी बात करें ये उसमें अपनी अक्ल लगा कर आपको खखोर के खाली कर देने में माहिर होते हैं. इनकी प्रमुख विशेषता होती है इनकी अक्ल का ग्रामोफ़ोन की अटकी हुई सूई की तरह होना। मान लीजिये इनका गीत बनारस पर रुक गया है. अब आप इनसे जलवायु परिवर्तन की बात करें तो यह उत्तर ऐसे देंगे- जलवायु परिवर्तन बड़ी समस्या है. इससे समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और तमाम समस्यायें खड़ी होंगी। जलस्तर से याद आया कि गंगा के जलस्तर में कमी भी आई है. खासतौर पर बनारस में- और बस- वहाँ से सीधे- और जब मैं बनारस में था-- इनके यहाँ पहुँच जाने के बाद इनका शिकार आमतौर पर स्ट्रेचर पर ही जाता है. इन्हें ऑडियो चाट के रूप में भी जाना जाता है. 

चाटों की तीसरी श्रेणी, हे तात, खयालन चाटों की है. यह निहायत दुर्दांत और भयानक किस्म के घुटे हुए चाट होते हैं. इनकी दुर्दांतता के किस्से सुनकर ही मनुष्य इतना भयाक्रांत रहता है कि मन में इनका ख़याल भी आ जाय तो लहरा कर गिर पड़ता है. इन्हें हौन्टिंग (haunting) चाट भी कहा जाता है. 

पर इन सबसे भयानक होते हैं सर्वोच्च श्रेणी के चाट- पर-खयालन चाट. यह चाटत्व की चरमावस्था है-इस अवस्था को प्राप्त हो गए चाटों से जीवित ही नहीं निर्जीव वस्तुयें भी भयभीत रहती हैं. मैं सत्य कहूँ तात, तो तमाम लोग बताते हैं कि इनके मेस में पहुँचने पर मेजों को जरा खिसक जाते हुए ही नहीं, ढाबे पर उन पत्थरों के भी अपनी जगह से खिसक जाते देखा गया है जिन्हें विद्रोही दादा तक दो दशक में न हिला पाये थे. इनको पर-खयालन इसलिए कहा गया क्योंकि इनके बारे में बगल के हॉस्टल में भी कोई सोच ले तो आपका दिमाग फेंचकुर फेंक देता है. इनको किसी और भाषा में परिभाषित करने वाला शब्द बना ही नहीं तात. मगर मैं आपको इनके आगे- अरे तात, क्या हुआ? 

दौड़ो से, एम्बुलेंस मँगवाओ- यक्ष चट के भूलुंठित हो गए हैं! बच गए तो आगे भी बताएंगे। 

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