उस पार काश्मीर उर्फ़ बंटी हुई जन्नत का दर्द

[राज एक्सप्रेस में 18-अप्रैल 2016 को प्रकाशित] 


सियासत अज़ब चीज है, जन्नत को भी बाँट सकती है. ऐसे जैसे इस दुनिया की जन्नत कहे जाने वाले काश्मीर को बाँट दिया अब नीलम नदी के दोनों तरफ दो काश्मीर हैं, दो मुल्क हैं, और हजार दिक्कतें हैं. इस अजब से बँटवारे से उपजी भू-राजनैतिक दिक्कतों से लेकर एक काल्पनिक रेखा से बाँट दिए गए हजारों परिवारों की छोटी छोटी दिक्कतों तक. हाँ, हम लोग इन दिक्कतों को अपने चुने हुए सर्वनाम से जानते हैं- पाक अधिकृत काश्मीर, भारतीय काश्मीर, भारत अधिकृत काश्मीर, आज़ाद काश्मीर कमाल ये कि ये तमाम नाम काश्मीर के बारे में कम, हमारे बारे में ज्यादा बताते हैं. हमारी राजनैतिक स्थिति से लेकर राष्ट्रीयता तक

खैर, अभी का मसला यह कि हंडवारा से श्रीनगर तक ही नहीं, जन्नत के उस तरफ मीरपुर से मुज़फ़्फ़राबाद तक भी क़यामत बरपा है. अवाम उधर भी सड़कों पर है और फिर अवाम सड़कों पर हो तो संगीनें और वर्दियां कहाँ पीछे रहती हैं. इस बार के प्रतिरोध प्रदर्शनों में मगर एक ख़ास बात है- यह कि मुज़फ़्फ़राबाद की सड़कों ने शायद पहली बार पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन देखे हैं. "काश्मीर बचाने निकले हैं, आओ हमारे साथ चलो" जैसे नारे सुने हैं. हाँ, पहली बार सुने जाने का मतलब, मगर, यह नहीं कि गुस्सा नया है. पाक अधिकृत काश्मीर की पाकिस्तान से निराशा किसी भी स्तर पर आम भारतीय काश्मीरी के गुस्से और ठगे जाने के भाव से ज्यादा हो तो कम नहीं ही होगी  

पाक अधिकृत काश्मीर के गुस्से के फूट पड़ने का सबब भले "आज़ाद काश्मीर" में आसन्न चुनावों से जुड़ता दिखता हो, इसकी जड़ें दरअसल बहुत गहरी हैं. आज़ाद काश्मीर का सबसे बड़ा दर्द दरअसल वह मजाक है जो 'आज़ादी' के नाम पर पाकिस्तान सरकार ने उसके साथ किया है 1974 के अंतरिम संविधान के मुताबिक़ मिली इस आज़ादी में नाम के 'राष्ट्रपति' और प्रधानमंत्री पद के सिवा दरअसल कोई आज़ादी शामिल नहीं है. आज़ाद काश्मीर के अपने खुद के संविधान के अनुच्छेद 21 को पढ़ना यह साफ़ कर देता है कि 'आज़ाद काश्मीर' का चुन हुआ प्रशासन दरअसल पूरी तरह से पाकिस्तान प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली 'आज़ाद जम्मू और काश्मीर परिषद' के अधीन है. वास्तविकता में यही परिषद इस्लामाबाद से 'आज़ाद काश्मीर' को चलाती है और इसके सचिव के पास 'आज़ाद काश्मीर' के चुने हुए प्रधानमंत्री से ज्यादा अधिकार होते हैं


इसीलिए जब यह टकराव फ़रवरी में 'आज़ाद काश्मीर' के प्रधानमंत्री चौधरी अब्दुल मज़ीद के पाकिस्तान प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ पर 'आज़ाद काश्मीर' के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाने में दिखा तो किसी को कोई आश्चर्य हुआ भी होगा तो बस इस बात पर कि इतनी देर से क्यों लगाया इस टकराव का तात्कालिक कारण था पाकिस्तान का जम्मू और काश्मीर के अविभाज्य हिस्से गिलगिट और बालटिस्तान को आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान में शामिल कर उन्हें पाँचवाँ राज्य बनाने का प्रस्ताव दरअसल पाकिस्तान का यह प्रस्ताव $46.2 अरब लागत वाले चाइना-पाकिस्तान स्पेशल इकनॉमिक कॉरिडोर को बनाने में चीन की उस हिचकिचाहट  को दूर करने के लिए उठाया गया कदम है जो उसे एक 'विवादित' क्षेत्र में इतना भारी निवेश करने से रोक रही हैं. गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का प्रांत बनाने से इस समस्या का वक्ती समाधान होना संभव है

पर फिर, यह प्रस्ताव "आज़ाद काश्मीर" सरकार के लिए ही नहीं, काश्मीरी स्वायत्तता का समर्थन करने वाले हर राजनैतिक समूह के खिलाफ ही नहीं जाता बल्कि उसकी आज़ादी का मजाक बना कर भी रख देता है. इसीलिए एक तरफ "आज़ाद जम्मू काश्मीर" सरकार के वित्त मंत्री ने अपनी विधानसभा में 12 जनवरी को इस प्रस्ताव के विरोध में प्रस्ताव रखा कि "गिलगित बालतिस्तान को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने का कोई भी प्रयास हमारी संयुक्त राष्ट्र संघ के उन प्रस्तावों पर स्थिति को बुरी तरह चोट पँहुचाएगा जो काश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करती हैं'. ठीक यही बात दूसरी तरफ से भी आई, जब भारतीय काश्मीर के हुर्रियत कांफ्रेंस के अलगाववादी ही नहीं बल्कि पाकिस्तान समर्थक नेता सैयद अली शाह गिलानी ने भी इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का हिस्सा बनाए जाने को काश्मीरियों को धोखा देने के बराबर करार दिया 

पाकिस्तान की यह हरकत फिर पाक अधिकृत काश्मीर के 1993 के जख्म भी हरे करती है जब पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायालय ने "आज़ाद काश्मीर" उच्च न्यायालय  के उन हिस्सों को वापस 'आज़ाद काश्मीर' में शामिल करने का आदेश दिया था जिन्हें पाकिस्तान की फेडरल सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था. तब पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय ने 'आज़ाद काश्मीर' के सभी तर्कों को मानते हुए भी उसका आदेश इस नुक्ते पर पलट दिया था कि 'आज़ाद काश्मीर' उच्च न्यायालय पाकिस्तान को आदेश नहीं दे सकती अब उसने यह भ्रम भी हटा लिया है सो प्रतिरोध लाज़िमी है. आने वाले दिनों में यह प्रतिरोध बढ़ेगा ही, कम नहीं होगा और प्रतिरोध बढ़ेगा तो दमन भी बढ़ना ही है

मतलब साफ़ है. और कुछ भी हो हो, पाकिस्तान के सिर्फ दुनिया की ज़न्नत के दुख बढ़ा सकता है, उन्हें दूर नहीं कर सकता हाँ, अपनी जरुरत पड़ने पर उन्हीं काश्मीरियों को ठग सकता है जिनकी लड़ाई लड़ने का दावा वह करता रहा है. आज गिलगित-बाल्टिस्तान है, कल उसके कब्जे वाला पूरा काश्मीर भी हो सकता है. काश कि यह बात मसर्रत आलम जैसे इधर के पाकिस्तान सर्मथक काश्मीरी नेता समझ पाएं 

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