सिर्फ़ छलावा है आतंक पर चीन का बदला सुर

[राज एक्सप्रेस में 9 जून 2016 को प्रकाशित] 

चीन ने पहली बार खुल के माना- पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता, ठहराया 26/11 हमले का जिम्मेदार. भारतीय मीडिया के हवाले से देखें तो शायद ऐसा लगेगा कि चीन ने अपनी विदेश नीति में कुछ बड़ा और क्रांतिकारी परिवर्तन कर डाला है. यह भी कि अब वह अपने केवल शीर्षक पढ़ के आह्लादित हो उठने वालों के लिए खबर बेशक बड़ी है, पर अफ़सोस- बस खबर ही है. कूटनीति समझना यूँ भी इतना आसान नहीं होता और फिर यह तो चीन की ठहरी.

सो साहिबान, अफ़सोस, राष्ट्रवादी हलकों में चरमसुख सी पैदा कर देने वाली यह खबर दरअसल अभी बस खबर ही है. भारत-चीन- पाकिस्तान संबंधों की दृष्टि से देखें तो यह दरअसल एक ऐसा अर्थहीन बयान है. फिर इस बयान की जरुरत क्यों कर पड़ी? इसलिए क्योंकि इसका वास्ता जेहादी आतंक प्रभावित चीनी क्षेत्रों से पाकिस्तानी और अफ़ग़ानी तालिबान को दूर रखने के लिए पाक सरकार और सेना पर और दबाव बनाने की कोशिश से है. पर उस तरफ बढ़ने से पहले चीन के इस ‘बयान’ और उसके वास्तविक फैसलों पर एक गंभीर निगाह डालते हैं.

सो पहली बात यह कि यह कोई बयान नहीं बल्कि मुंबई हमले में पाकिस्तान नहीं बल्कि लश्कर-ए-तैयबा की संलिप्तता को लेकर चीन के सरकारी टेलीविजन पर प्रसारित एक वृत्तचित्र है. जी- यह वृत्तचित्र मुंबई हमले पर पाकिस्तान की आधिकारिक स्थिति के खिलाफ नहीं जाता. पाकिस्तान ने हमेशा ही दावा किया है कि इस हमले में पाकिस्तान सरकार/एजेंसियों की कोई भूमिका नहीं थी और यह उन गैर-सरकारी तत्वों की हरकत है जिनसे पाकिस्तान खुद ही परेशान है. अब इतनी सीधी सी बात का भारतीय मीडिया में आते आते चीन की आतंक में पाकिस्तान की संलिप्तता स्वीकारने जैसी बात बन जाना भारतीय विमर्श की गैर-जिम्मेदारी ही दिखाता है.

दूसरी बात यह कि यह वृत्तचित्र पहली बार नहीं दिखाया गया. इसका पहला प्रसारण दरअसल भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की चीन यात्रा के ठीक पहले प्रसारित किया गया था और इस सप्ताह इसका पुनर्प्रसारण किया गया.

तीसरी बात यह कि इस वृत्तचित्र के ठीक पहले पाकिस्तानी आतंकवाद पर चीन की ठोस कार्यवाही क्या थी? यह कि उसने संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तानी आतंकी समूह जैश-ए- मोहम्मद के सरगना और भारत में हालिया पठानकोट हमलों सहित भारत में तमाम हमलों के सूत्रधार बताये जाने वाले मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने के भारतीय प्रस्ताव को वीटो ही नहीं किया था बल्कि इस वीटो को उचित भी ठहराया था.

चीन के हालिया बयान को इस रौशनी में देखें तो तमाम बातें साफ़ होती हैं. चीन सच में पाकिस्तान जमीन से दहशत फैला रहे संगठनों पर गंभीर होता तो फिर मसूद अजहर पर भारतीय प्रस्ताव को खारिज क्यों करता? ऐसे प्रस्तावों पर समर्थन और विरोध के परे मतदान न करने का विकल्प भी होता है. साफ है कि इस प्रस्ताव के पारित होने की अवस्था में पाकिस्तान की वैश्विक स्तर पर छीछालेदर होती और उसके अभिन्न मित्र चीन ने उसे बचाने के लिए ही वीटो किया.

उसके बाद की कूटनीतिक गतिविधियाँ देखें तो मामला और साफ़ होता है. ऐसे कि संभवतः चीन की इस हरकत के विरोध में उस पर दबाव बनाने के लिए भारत ने उसके आत्मनिर्वासित उईगुर नेता डोल्कुन ईसा और असंतुष्ट नेताओं लु जिंगुआ और कार्यकर्ता आर. वांग को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में लोकतंत्र और चीन विषय पर एक सम्मेलन में शिरकत करने के लिए पहले वीजा दे दिया. पर फिर चीन के तीखा ऐतराज पर उनके वीजे रद्द भी कर दिए. भारत की इस कार्यवाही को सारी दुनिया में उसकी हलकी कूटनीति के उदाहरण के बतौर देखा गया.

अब अगर चीन के इस कदम पर वापस आयें तो इसके निहितार्थ और साफ़ होंगे. चीन के भीतर, खासतौर पर उईगुर बहुल जिनजियांग प्रांत में हाल के दौर में जेहादी इस्लाम के लिए समर्थन भी बढ़ा है और हमले भी. फिर इन हमलों में पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों से काम कर रही 1993 में स्थापित तुर्केस्तान इस्लामिक पार्टी नाम के संगठन की बड़ी भूमिका है. चीन लंबे दौर से अपनी सीमा के भीतर असंतोष से निपटने के साथ साथ इस तुर्केस्तान पार्टी को कमजोर करने की कोशिश करता रहा है और इसके लिए 2000 में तब अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान से समझौते की हद तक गया है.

हाँ उसके ठीक बाद हुए 11 सितम्बर के हमलों के बाद बदल गयी भू-राजनैतिक स्थितियों की वजह से चीन के अपनी सीमाओं के भीतर असंतोष और तुर्केस्तान इस्लामिक पार्टी को नियंत्रित/ख़त्म करने के प्रयासों को भारी धक्का लगा है. चीन के बदले सुरों के पीछे शायद यही असहजता और पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है कि वह अपनी पूरी ताकत ऐसे समूहों को ख़त्म करने में लगाए जो चीन के अन्दर अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.

इससे ज्यादा इसके कोई निहितार्थ हुए तो वह मसूद अज़हर को प्रतिबंधित करने के खिलाफ उसके वीटो की मियाद सितम्बर में ख़त्म होने के साथ साफ़ हो जायेंगे. वैसे चीन पर नजर बनाये रखने वालों में से किसी को ऐसा नहीं लग रहा कि चीन मसूद अज़हर या पाकिस्तान पर अपना रुख बदलेगा- उसने जो दबाव बनाना था वह बना लिया है. हम फिर जितना चाहें प्याली में तूफ़ान लाते रहें.

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