गांधी, गोडसे और व्हाट्सऐप से परे असल इतिहास


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मुझे गांधी की जयंती पर गोडसे का ज़िक्र बस उसके अपराध को याद दिलाने तक पसंद है! आखिर गांधी जयंती गांधी जी को याद करने का दिन है- गोडसे को नहीं! 

अगला दिन गोडसे, और उसके नए समर्थकों से सवाल का- पूछते रहिये जब तक वे जवाब न दें- पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलाने के लिए गांधी के अनशन के 'कारण' से नाथूराम गोडसे इतना उद्वेलित हुआ कि उसने उनकी हत्या कर दी। बाद में अपने बयान में (एक कथित बयान उसकी आवाज में भी है जिसका टेप संघियों के पास मिलता है) वह कहता है कि मैं गांधीजी के अच्छे कामों की प्रशंसा करता हूँ लेकिन वह 55 करोड़...और उनके द्वारा पाकिस्तान बनने से न रोक पाने का उन्हें दंड देना चाहता था। अखबारों के आलावा नाथूराम गोडसे को क्या जानकारी थी कि पाकिस्तान कैसे और किन परिस्थतियों में बना? 

क्या वह यह नहीं जानता था कि सबसे पहले द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की बात उसके वैचारिक पिता सावरकर ने की थी? नाथू पाकिस्तान बनने से उद्वेलित था तो उसने जिन्ना की हत्या करने की कोशिश क्यों नहीं की? 

नाथू देश से इतना ही प्रेम करता था तो उसने पहले किसी अंग्रेज शासक की हत्या क्यों नहीं की? 

नाथू सच में ही पाकिस्तान बनने से उद्वेलित था तो उसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं से पाकिस्तान बनने से रोकने के लिए कार्रवाइयों की मांग क्यों नहीं की? 1925 से 1947 तक 22 साल पुराना हो चुका था संघ आखिर! 

दरअसल पाकिस्तान बनाने का विरोध करना भूल जाइये- संघी नायक श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ सरकार चला रहे थे! बाद में भी, वे नेहरू के आमंत्रण पर नेहरू की सहृदयता, उद्दात्त मन और लोकतांत्रिकता की वजह से नेहरू मंत्रिमंडल के सदस्य रहे- तारीखें ध्यान रखियेगा- 8 अप्रैल 1950 तक. जी- गांधी की हत्या के बाद भी 2 साल से ज़्यादा तक- नाथूराम गोडसे को फांसी देने वाली सरकार के मंत्री! उस सरकार के मंत्री जिसने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था! 

दरअसल गांधी हत्या के विरोध के चलते उनके हिन्दू महासभा से मतभेद हो गए थे, उन्होंने संगठन को अपनी राजनैतिक गतिविधियाँ बंद कर लेने का सुझाव दिया था और फिर दिसंबर 1948 आते आते हिन्दू महासभा से इस्तीफा ही दे दिया था! जी- मतलब साफ़ है- आप श्यामाप्रसाद मुखर्जी और गोडसे तक को एक साथ सही बताना छोड़ ही दीजिये- एक क़तार में खड़ा तक नहीं कर सकते!

सनद रहे कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा संघ पर प्रतिबंध के विरोध में नहीं- हिंदुस्तान कर पाकिस्तान दोनों में अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा और अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए अल्पसंख्यक आयोगों की स्थापना के लिए लियाक़त नेहरू समझौते के विरोध में दिया था! जी हाँ- यह हिन्दू महासभा/संघ के हिन्दू प्रेम पर भी एक हलफ़िया बयान है- यहाँ रोज़ पूछने वाले कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का क्या वही हैं जिन्होंने वहाँ के अल्पसंख्यक यानी ज़्यादातर हिन्दू और सिख- के अधिकारों के लिए हुए समझौते का विरोध किया! 

खैर- वापस गोडसे पर- न गोडसे ने गांधी की हत्या का प्रयास पहली बार 1948 में किया था, न वह गांधी पर पहला हमला था! गांधी पर अंतिम, प्राणघातक हमले को मिला कुल 6 हमले हुए और गोडसे उनमें से 3 में शामिल था. 

गांधी पर पहला हमला 25 जून 1934 को पुणे कारपोरेशन ऑडिटोरियम में हुआ. उनकी और कस्तूरबा साथियों सहित दो कारों से एक सभा में जा रहे थे, उनकी कार फँस गई- जो पहली पहुँची हमलावरों ने उसी पर बेम फेंक दिया। 2 पुलिसकर्मी और कारपोरेशन के मुख्य अधिकारी सहित कुल 8 लोग गंभीर रूप से घायल हुए. इस हमले के बारे में विस्तार से जानने के लिए उनके सचिव प्यारेलाल जी की किताब महात्मा गांधी- द लास्ट फेज में है.

दूसरा हमला जुलाई 1944 में हुआ. इस बार पंचगनी में जहाँ गांधी अपनी रिहाई के बाद स्वास्थ्य लाभ के लिए गए थे. इसमें गोडसे शामिल था- लोगों ने उसे पकड़ा भी. गांधी जी ने उससे उनके साथ ही रुकने का अनुरोध किया ताकि वह उसके विचार समझ सकें। गोडसे ने इंकार कर दिया और गांधी जी ने उसे पुलिस तक को नहीं सौंपा- जाने दिया! ध्यान दें कि अभी बंटवारे का फैसला तक नहीं हुआ था, गांधी समेत कांग्रेस के तमाम बड़े नेता या जेल में थे या तुरंत छूटे थे, कैबिनेट मिशन का गठन तक नहीं हुआ था! सो साफ़ है कि देश विभाजन इस हमले का कारण नहीं हो सकता! न ही पाकिस्तान को 54 करोड़ देना। 

तीसरा हमला फिर से उसी साल- सितंबर 1944 में बम्बई में- इसमें भी नाथूराम ने छूरी के साथ आश्रम में घुसने की कोशिश की, फिर से गांधी जी ने उसे माफ़ कर दिया! 

चौथा जून 1946 में. जब पुणे को जा रही उनकी स्पेशल रेलगाड़ी नेरुल और कजरात स्टेशन के बीच दुर्घटनाग्रस्त हुई- किसी ने पटरियों पर बड़े बड़े पत्थर रख दिए थे. इसी हमले के बाद गांधी जी ने अपना मशहूर भाषण दिया था कि- मेरा इरादा 125 साल जीने का है. (वे गलत थे- वे हज़ारों लाखों साल जियेंगे). 

पाँचवा 20 जनवरी 1948 को- जब नाथूराम गोडसे ने बिड़ला हाउस में ही उनकी प्रार्थना सभा पर बम फेंका। इरादा भगदड़ का फायदा उठा कर मंच पर अकेले बचे गांधी पर दूसरा बम फेंकने का था पर सह अभियुक्त दिगंबर बाघे घबरा गया, खुद भीड़ के साथ भाग निकला! इस हमले में मदनलाल पाहवा पकड़ा गया था! 

छठवां 30 जनवरी 1948 को जिसे सब जानते हैं. इस हमले के बारे में एक और झूठ बोला जाता है- कायर गोडसे को बहादुर बनाने का- उसके न भागने के दावे के साथ! पर असल में उसने भागने की कोशिश की थी- और बिड़ला हाउस में काम करने वाले एक ओड़िया माली- रघुनाथ नायक ने उसे दौड़ा के दबोच लिया था- और भागने नहीं दिया था! 

सो बात बहुत सादी और आसान है- गोडसे ने विभाजन या पाकिस्तान के लिए अनशन के मुद्दे पर गांधी की हत्या नहीं की! की होती तो कम से कम संघ खेमे के तब के बड़े शिखर पुरुष और नेहरू मंत्रिमंडल के मंत्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने इसका ज़िक्र किया होता, इसके खिलाफ इस्तीफ़ा दिया होता- हिन्दू महासभा न छोड़ी होती। दरअसल नाथूराम गोडसे एक विकृत मानसिकता से ग्रस्त व्यक्ति था जिसे एक ख़ास विचारधारा के प्रशिक्षण ने बरगलाया और हत्यारा बना दिया। बात इतनी सी है!

Comments

  1. बेहतरीन सवालो और तथ्यों से सुसज्जित शानदार लेख...🙏

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  2. Why this facts are not published so far

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  3. An eye opening for whatsapp generation.

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  4. किसी का नाम यो ही नही महात्मा हो जाता है
    जय गाँधी जी

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  5. मैंने गांधी को क्यों मारा ,पढकर मुझे गोडसे के विचारों से जो थोड़ी बहुत इत्तेफ़ाक़ी थी ,इस लेख को पढकर पूरी तरह समाप्त हो गयी।

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