जिन जगहों में रहती है रूह

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एक छोटा सा बच्चा था। एक छोटे से क़स्बे में, ऐसा कि नाम लो तो किसी को पता भी न चले कि कहाँ है। हाँ, उस क़स्बे में एक डिग्री कॉलेज था, एक छोटा सा रेलवे स्टेशन और एक शुगर मिल पर बस यही इतना था। बाक़ी बस ये कि बच्चे के स्कूल के रास्ते में ख़ूब सारे खेत पड़ते थे। अब भी बचे हुए हैं कुछ, 30 साल बाद, उतने नहीं पर कुछ ज़रूर! 
बच्चे को मगर दुनिया देखनी थी। रोज़ शाम रेलवे स्टेशन भाग जाता था, रेलगाड़ियों के नाम पढ़ता था। बॉम्बे वीटी एक्सप्रेस (अब इन नाम बदलो समयों में कुशीनगर एक्सप्रेस), अवध एक्सप्रेस, आम्रपाली एक्सप्रेस, आबिदा एक्सप्रेस (अब सत्याग्रह) वग़ैरह। बच्चा सोचता था कहाँ जाती होंगी ये रेलगाड़ियाँ और फिर उनके बारे में कहानियाँ गढ़ता था, साथ के बच्चों को सुनाता था। बावजूद इसके कि उसने लखनऊ भी नहीं देखा था तब तक- उसकी ज़िंदगी उस क़स्बे बभनान और ननिहाल सुल्तानपुर के बीच घूमती थी- रास्ते में पड़ने वाले उसके गाँव बड़हर ख़ुर्द और अयोध्या के साथ।

पर उसकी कहानियाँ इतनी सच्ची लगती थीं कि और बच्चे साँस रोके सुनते थे। पूछते थे कब गए, कैसे गए। ऐसे कि घर तक शिकायतें आने लगीं- ये ख़ुद पढ़ता लिखता नहीं और हमारे बच्चों को भी ख़राब कर रहा है। अब सब के सब बस घूमना चाहते हैं, कोई पढ़ना ही नहीं चाहता। 


Small boy is sitting in the front
सबसे आगे बैठा हुआ है वो बच्चा 


बच्चे के माँ बाप को भी शक होता था। कब घूम आया ये? कैसे!

कभी नहीं गया, बच्चे का जवाब होता था।

फिर तुम्हें इन सबके बारे में कैसे पता- नेपाल में पोखरा, लखनऊ में रेजीडेन्सी- स्वतंत्रता संघर्ष का एक अहम पड़ाव, कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल, मॉस्को का क्रेमलिन स्क्वेयर? कैसे?

जो किताबें आप मंगाते हैं- सोवियत यूनियन की मीशा, रोज़ के अख़बार, आपकी पत्रिकाएँ- उनसे: छोटे बच्चे का हंसते हुए जवाब होता था!

और ये सच था। वो बच्चा जानने लगा था कि आबिदा एक्सप्रेस दिल्ली जाती है- दिल्ली देश की राजधानी है, वहाँ इंडिया गेट है, उसके साथ बोट क्लब है- बाक़ी कसर चौधरी चरण सिंह के ऐतिहासिक धरने से- जिसके बाद बोट क्लब पर धरने प्रतिबंधित ही हो गए की तस्वीरों से। बन गई कहानी।

बच्चे को तब नहीं पता था कि रूह क्या होती है। पर कुछ जगहें ज़हन में बस रह जाती थीं, अब तक हैं। बुल्ले शाह के बारे में पढ़ा कभी और पाकिस्तान में चला गया क़सूर तब से खींचता है। वो हुएन सांग की भारत यात्राओं के बारे में पढ़ेगा और सोचेगा मैं उसके घर जा सकता हूँ कभी? कैसे आया होगा वो?

उसकी हिंदी की किताब ज्ञान भारती में अंगकोर वाट पर एक लेख होगा, दुनिया के सबसे बड़े मंदिर संकुल पर- विष्णु मंदिर से शुरू होकर बौद्ध मंदिर तक पहुँचे अंगकोर वाट पर और वो सोचेगा कभी देख सकूँगा मैं? सीढ़ियाँ चढ़ सकूँगा? 
वो बच्चा बड़ा हो गया है। उसने अंगकोर पर सूरज उगते देख लिया है। वो शियान में हुएन सांग की मोनेस्ट्री हो आया है, उनकी मूर्ति के चबूतरे पर बैठ आया है।

कसूर मगर बाक़ी है।

अब वो बड़ा हो गया बच्चा हांग कांग को घर कहता है- बड़हर ख़ुर्द, हर्रैया से 3700 किलोमीटर और तीन समंदर दूर हांग कांग को।

ये कहानी उस बच्चे की कहानी है। 

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