हम तुम्हारे साथ हैं अर्नब गोस्वामी - हम जेनएयू हैं

तुम्हारी गिरफ़्तारी की ख़बर मिली अर्नब गोस्वामी। फिर कैसे हुआ ये देखा! इतनी बेइज़्ज़ती? ऐसे मार पीट के?
धक्का दे कर? 

हाँ. हम तुम्हारे साथ हैं अर्नब. क्योंकि हम तुम नहीं हैं. हम जेनएयू हैं. याद तो होगा? नफ़रत तो तुम लगातार भड़का रहे थे. अपनी कंगारू कोर्ट में खुद ही वकील खुद ही जज बन कर हमें देशद्रोही घोषित कर रहे थे, भीड़ को हमारे खिलाफ भड़का रहे थे. इंकार नहीं करूँगा, तुमने हमें भी बुलाया था अपनी अदालत में- कई बार।  पर बोलने कभी नहीं दिया. कभी. फिर हमने आना बंद कर दिया. तुम भीड़ भड़काते रहे.

हमारे ऊपर भरी अदालतों में हमले हुए. हम भी बस आरोपी ही थे, आज भी उतने ही हैं. 

तुम और शिकार चुनते रहे. जामिया, शाहीन बाग़, भीमा कोरेगांव- हर जगह बिना किसी सुनवाई के तुमने जिसको चाहा देशद्रोही घोषित कर दिया, पाकिस्तान का एजेंट घोषित कर दिया, टुकड़े टुकड़े गैंग, अर्बन नक्सल जाने क्या क्या. 

अभी सुशांत सिंह राजपूत वाले मामले में भी तुमने यही किया था न अर्नब? तुम्हारे पास तो सुशांत की हत्या के भी पूरे सबूत थे और उसमें रिया चक्रवर्ती की भूमिका के भी. तुम्हारे- और तुम्हारे पीछे और शर्माओं, कुमारों, चौधरियों ने? सीबीआई, ईडी, एनसीबी क्या नहीं छुड़वा दिए तुमने उसके पीछे! और तुम्हारे, कैमरों से लैस गुंडे थे तो थे ही- उसके घर में घुसने की कोशिश करते हुए. तुम्हें याद है उसकी सुनवाई पर कैसे तुम्हारे गुंडों ने उसकी लगभग लिंचिंग कर दी थी? उसके साथ यौन हिंसा तक की थी?

लेकिन एक बात बोलूं अर्नब? उसकी लड़की का चेहरा याद है- उतनी हिंसा के बीच सीधे तुम्हारे गुंडों की आँखों में देखती हुई आँखें, भावहीन पर तना हुआ चेहरा। निडर. बेख़ौफ़। ललकारता हुआ. जेल जाते हुए तो मुस्कुराई भी थी वो, तुम्हारे गुंडों की तरफ हाथ भी हिलाया था. महीने भर रही थी. 

पर तुम तो बहुत कायर निकले अर्नब. बहुत छोटे। मुझे लगा था कि तुम पुलिस को ऐसे ही ललकारोगे जैसे अपने स्टूडियों से ललकारते थे- आ जा उद्धव। आ जा परम बीर. पर तुम्हारी तो आवाज ही नहीं निकल रही थी. गिड़गिड़ा रहे थे- सोशल डिस्टैन्सिंग रखें. आई रिक्वेस्ट यू- तुमने तो कभी किसी से रिक्वेस्ट नहीं किया था अब तक! तुम से ये उम्मीद न थी- इतने कायर. रिया से ही सीख लिया होता! 

क्या है कि हम जैसे तुम्हारे और तमाम शिकार ज़मीनी लड़ाईयों से निकले हैं, पुलिस से जूझते रहे हैं. हमारे उमर खालिद, सुधा भारद्वाज, कन्हैया कुमार- उनकी आँखों में खौफ न होना समझ आता है. रिया चक्रवर्ती तो हमारी दुनिया से बहुत अलग- बॉलीवुड जैसे अमीर, सुरक्षित इलाके की थी- वो नहीं घबराई। सामना किया। उसके पिता पर तुम्हारे गुंडों ने हमला किया- इंडियन एयर फ़ोर्स ऑफिसर पर. तब लगा था टूट जाएगी। नहीं टूटी! 

तुम भी तो इधर कुछ हफ़्तों से चीख रहे थे कि आर्मी ऑफिसर के बेटे हो. सच में हो? रिया ने तो साबित किया! तुमने तो गिड़गिड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी- सोशल डिस्टैन्सिंग, दवा लेने दो, सास ससुर से बात करने दो, बीवी से बात करने दो! तुम्हारी आवाज़ एक बार ऊँची नहीं हुई- न हुई- अपने स्टूडियों में हर कुत्ता शेर होता है- पर कम से कम गिड़गिड़ाते तो न. गरिमा से चले जाते. सिर्फ डॉक्टर थे कफील खान- कोई अनुभव नहीं था सड़कों की लड़ाई का. उनके पिताजी तो सेना से भी नहीं थे रिया की तरह! 

एक बात और बोलूं अर्नब. तुम बार बार कह रहे तुम्हारी बीवी से बदतमीजी की, तुम्हारे बच्चे को मारा। बहुत कोशिश की अफ़सोस करने की. यकीन करो, बहुत. खुद छात्र राजनीति की है, पुलिस की बर्बरता का शिकार रहा हूँ. फिर ह्यूमन राइट्स में काम करता हूँ. देखा है दर्द. तुम खुद को बार बार कुछ प्रमुख नागरिक  

जैसा बता के गिड़गिड़ा रहे थे- मुझे पुलिस बर्बरता ठीक से पता है. 

पर जानते हो अर्नब- मुझे तब भी सुधा भारद्वाज की बेटी, बिनायक सेन की बेटियाँ नहीं याद आईं. उन्होंने अपने माँ बाप को जीवन भर संघर्ष करते देखा था. मुझे फिर रिया याद आई, उसके पिता याद आये. मुझे कफील खान की दूधमुंही बच्ची याद आई जिसको बाप से सालों दूर रखा गया. वो एनएसए लगा के जिस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट खूब बरसा. 

हम फिर भी तुम्हारे साथ हैं अर्नब. तुम्हारे जितना गिर पाना संभव ही नहीं है न! हौसला रखो. देश की न्यायपालिका में, कानून में भरोसा रखो. 

जैसे हम रखते हैं, सालों साल बिना चार्जशीट जेल में बिता के, फिर विचाराधीन कैदी की तरह- फिर बाइज़्ज़त बरी हो जाते हैं- उन खो गए सालों का मुआवजा तक पाए बिना. हौसला रखो अर्नब, खुशकिस्मत हो तुम कि देश का कांग्रेस अंतोनियो माइनो की वाड्रा कांग्रेस ने बनाया था- जिसमें झूठ हो तो आतंकवाद के आरोप भी खारिज हो जाते हैं. हाँ, सब कुछ ठीक नहीं है- बेगुनाह को जेल में एक दिन भी रहना पड़े तो अन्याय है- पर फिर भी, छूट जाते हैं! जिनके तलवे चाटते हो न अर्नब, कहीं उनके बनाये संविधान में लटकते तो रायगढ़ के रास्ते में गाड़ी पलट जाती. 

हौसला रखो अर्नब, हम तुम्हारे साथ हैं. आखिर जेएनयू हैं हम. तुम्हें सजा तो होनी चाहिए लेकिन अदालत से. पुलिस दे ये ठीक नहीं. 

न न, अब ये मत सोचना कि तुम्हारे लिए सड़कों पर उतर आएंगे. तुम्हारी कंगारू अदालत के भेजे गुंडे याद हैं- उनके दिए ज़ख्म अभी अभी भरे हैं और हमारी लड़ाईयां बहुत जगह हैं अर्नब. जिनके खेत छीने जा रहे उन किसानों के साथ, आदिवासियों के साथ, भाजपा विधायकों के बलात्कार की शिकार स्त्रियों के साथ, जिनकी नौकरियाँ छीनी जा रही हैं उन नौजवानों के साथ. हम थोड़ा व्यस्त हैं. 

हमें पूरी उम्मीद है कि सारे राष्ट्रवादी तुम्हारे साथ खड़े होंगे- सबसे पहले तो मीडिया चैनल. वो सुधीर चौधरी, वो तो तुमसे बड़ा राष्ट्रवादी था न पहले? नविका कुमार? कौन शिवशंकर? दीपक चौरसिया? वगैरह वगैरह? तुम सब देशद्रोहियों के साथ लड़ाई के लिए राष्ट्रवादियों को इकठ्ठा करते हो. मुझे पूरी उम्मीद है तुम्हारे जैसे नेशन फर्स्ट के लिए सब अब तक पहुँच भी गए होंगे- थाना घेर लिया होगा- एक आवाज़ में पूरे देश को जगा रहे होंगे- तुम्हारे खिलाफ हुए अन्याय को रोकने के लिए. 

अरे हाँ, अर्नब- तुम्हारे लिए तो लॉकडाउन के बीच सुप्रीम कोर्ट खुल जाती थी, न? उम्मीद है तुम्हारे वकील पहुँच भी चुके होंगे. 

तुम जल्द लौट के आना. मुझे पूरा यकीन है कि मुंबई पुलिस तुम्हारी बढ़िया ख़ातिरदारी करेगी. आखिर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जी शिव सेना के नेता हैं- हमेशा से राष्ट्रवादी रहे हैं. 

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