जब गुरु नानक बाबर से मिले उर्फ़ मुग़ल सिख संबंधों पर एक नज़र

आज गुरु तेग़बहादुर का शहीदी दिवस है, आज ही के दिन औरंगज़ेब के आदेश पर उनका सर कलम करवा दिया गया था. आज पूरे दिन संघी खेमा इस शहादत को अपनी नफ़रत बेचने के काम में लाएगा। 


पर बात यहाँ तक पहुँची कैसे? मुग़ल सल्तनत और सिखों के असली रिश्ते क्या थे?


कमाल है कि सिख मुग़ल वार्तालाप बाबर और गुरु नानक के वक़्त से ही जारी है- दोनों की निजी मुलाक़ात हुई थी. तब जब भारत जीतने आ रहा बाबर अब के पाकिस्तान में ऐमानाबाद (तब सैदपुर- पर नाम आज़ादी के पहले ही बदल चुका था, नए नवाब ने बदला था. कुछ सूँघ मत लीजियेगा!) पहुँचा था और शहर को कब्रिस्तान बना दिया था, व्यापारियों का ख़ास क़त्ले आम किया था. पर ये व्यापारी थे कौन इसको याद करने के लिए आपको भागो और गुरु नानक की कहानी याद करनी पड़ेगी! याद है न? अपने शहर पहुंचे नानक को सेठ भागो ने बड़े भोज में बुलाया, नानक गए नहीं। गरीब बढ़ई भाई लालो के यहाँ खाया। भागो ने वजह पूछी तो उसकी रोटी निचोड़ दी- खून निकला- गरीबों का खून जो उसने चूसा था. भाई लालो की निचोड़ी- तो दूध निकला! भाई लालो का गुरुद्वारा आज भी है ऐमानाबाद में. भागो की हवेली का पता नहीं!


गुरु नानक हमले के कुछ ही रोज पहले सैदपुर पहुँचे थे. बाबर की फौज ने उन्हें भी गिरफ्तार कर जेल में डाल आक्रमणकारी सेना के लिए मक्का पीसने के काम पर लगा दिया था. पर जेल में रक्षकों ने उन्हें देखा तो चिंतित हुए, और बाबर को सन्देश भेजा कि आप ने एक बहुत पवित्र आदमी को गिरफ्तार कर लिया है, गलती की है. यह जान कर बाबर खुद उनसे मिलने जेल आया- उन्हें आज़ाद किया और फिर उनसे लंबी चर्चा की.


गुरु ग्रन्थ साहिब में उस चर्चा का ज़िक्र है- उसे बाबर वाणी कहा जाता है. कमाल कि गुरु ग्रन्थ साहिब में बहुत कम ऐतिहासिक घटनाओं का ज़िक्र है और यह उनमें से एक है. बाबर गुरु नानक से बहुत प्रभावित भी हुआ और उसने आगे से ऐसे कत्लोआम न करने का वादा किया। कहते हैं कि गुरु नानक ने उसे आशीर्वाद भी दिया कि अगर मुगलों ने सहिष्णुता और अमन से राज किया, तो उनका राज 1000 साल चलेगा। नहीं किया तो 7 पीढ़ियों में बिखर जायेगा।


गुरु नानक की इस कहानी में एक और कमाल जिक्र है- जिसको गुरु ग्रन्थ साहिब में जगह दी गई है. ये कि हमले के पहले व्यापारी तब के संतों के पास गए थे, उनसे नेतृत्व की अपील की थी. संतों ने कहा कि वे अमन वाले लोग हैं, आएंगे नहीं पर पूजा करेंगे- मंत्र पढ़ेंगे जिससे मुग़ल सेना अंधी हो जाएगी। नानक उनके बारे में गुरु ग्रन्थ साहब में ही लिखते हैं


कोटी हू पीर वरजि रहाए जा मीरु सुणिआ धाइआ थान मुकाम जले बिज मंदर मुछि मुछि कुइर रुलाइआ ॥
कोई मुगल न होया अंधा किनै न परचा लाया।


खैर- बात मुग़ल और सिख रिश्तों की है. तो बाबर के बाद हुमायूँ को तो वक़्त ही नहीं मिला, पर अकबर के रिश्ते सिख गुरुओं से बहुत अच्छे थे. आप में से कितने लोग जानते हैं कि स्वर्ण मंदिर अकबर की दी जमीन पर बना है. सिर्फ यही नहीं, अकबर चौथे गुरु राम दास से मिले भी, और बाद में पांचवे गुरु अर्जुन दास के साथ लंगर भी छका!


फिर गड़बड़ कहाँ हुई?


इसका जवाब इतिहास के हादसों में है! दुनिया का ज़्यादातर इतिहास इत्तेफाक से बना है, योजना से नहीं! कंटिंजेंसी कहते हैं जिसे!


सो अकबर के बाद हुए मुग़ल शहंशाह जहांगीर- और उनके बेटे थे खुसरो। खुसरो ने कर दी बगावत और और मांग ली गुरु से शरण और मदद. गुरु गुरु थे- अपनी शरण में आने के लिए हाथ जोड़े खड़े मुग़ल शहज़ादे को ही नहीं, किसी को न नहीं कह सकते थे. ये इतिहास की एक त्रासदी थी. इसे स्वर्ण मंदिर के लिए जगह देने वाले मुगलों को, गुरु नानक का आशीर्वाद पाए मुगलों को गुरु नानक के अनुयायियों के खिलाफ खड़ा कर देना था. जहांगीर था पागल- सबसे अयोग्य मुस्लिम शासक- कला छोड़ कर उसे कुछ नहीं आया. मुग़ल सल्तनत सबसे काम उसी ने फैलाई। उसे गुरु से समझौता कर लेना था, उसने उन्हें मृत्यु दंड दे दिया। उसके बाद मुग़ल सिख रिश्तों को एक अलग ही रस्ते पर चल पड़ना था.


पर यह सब कह चुके होने के बाद भी रिश्ते न हमेशा अच्छे रहे न खराब। बनते बिगड़ते रहे. और रिश्ते जो थे वे धर्म नहीं ताक़त की, सल्तनत की वजह से थे. चमकौर की मशहूर लड़ाई जिसमें गुरु गोविन्द सिंह की सिर्फ 40 की फौज ने जिस दसियों हज़ार की मुग़लिया फौज को शिकस्त दी थी उसमें राजपूत भी शामिल थे! हाँ- गुरु गोविन्द सिंह एक तरफ- मुग़ल राजपूत एक तरफ. ये भी कि औरंगज़ेब ने जब गुरु तेगबहादुर की हत्या करवाई तब भी उसका सेनापति सवाई राजा जय सिंह था, तब भी जसवंत सिंह उसके दरबारी थे! तमाम और के साथ!


इस पर और विस्तृत लेख/वीडियो चाहते हैं?

Comments