कैसे बना संयुक्त राष्ट्र संघ

24 अक्तूबर 2023 को आईनेक्स्ट पेपर में संपादकीय लेख के रूप में प्रकाशित

यूनाइटेड नेशंस माने संयुक्त राष्ट्र संघ। विश्व का सबसे बड़ा संगठन जिसमें दुनिया के सभी संप्रभु 193 देश शामिल हैं। यह वैसा संगठन है जिसकी बैठकों में एक दूसरे से युद्ध कर रहे, बातचीत को बिलकुल भी तैयार नहीं देश भी साथ बैठते हैं!

यह संगठन क्यों और कैसे बना इसकी कहानी भी बहुत दिलचस्प है। यह कहानी शुरू होती है पहले विश्व युद्ध से जिसके बाद दुनिया के ताकतवर देशों को समझ आया कि अंतरराष्ट्रीय संबंध सिर्फ़ देशों के ऊपर नहीं छोड़े जा सकते, वह करना भयानक तबाही ला सकता है। इसके लिए देशों के ऊपर की संस्थाएँ चाहिएँ। शुक्र है कि उनके पास 1863 में स्थापित इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस का उदाहरण था जिसने युद्धरत देशों के बीच भी घायल सैनिकों की मदद के लिए निष्पक्षता और सुरक्षा के साथ मदद करने का अधिकार जीत लिया था।

तो पहले विश्व युद्ध में जीत के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन की अगुवाई में पेरिस पीस कांफ्रेंस हुई जिसमें वैश्विक शांति और सुरक्षा की गारंटी देने के लिए एक वैश्विक संगठन की ज़रूरत पर बल दिया गया और फिर 10 जनवरी 1920 को 42 देशों की सदस्यता के साथ लीग ऑफ़ नेशंस का आधिकारिक गठन हुआ। यह और बात कि लीग ऑफ़ नेशंस का असफल होना भी तय ही था क्योंकि इसके गठन में सबसे ज़्यादा भूमिका निभाने वाला अमेरिका ही अपनी अलगाववादी नीति के चलते इसमें कभी शामिल नहीं हुआ!

1920 के दशक में जरा बहुत सफलताओं के बाद लीग की कमजोरी साफ़ होने लगी। 1933 में जापान ने मंचूरिया पर हमला किया तो लीग में 40 देशों ने उसको हटने के लिए वोट किया। पर जापान मंचूरिया से हटने की जगह लीग से ही हट गया! लीग १९३५ में शुरू हुए दूसरे इटली इथियोपिया युद्ध को भी रोकने में असफल हुई। लीग ने इस युद्ध के चलते इटली पर आर्थिक प्रतिबंध लगाये पर उन्हें मानने की जगह इटली और उसके साथी देश लीग छोड़ कर चले गये। फिर दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत के साथ ही लीग पूरी तरह भंग भी हो गई!

द्वितीय विश्व युद्ध में मची तबाही को देखते ही फिर से एक ऐसे वैश्विक संगठन की ज़रूरत साफ़ होने लगी जो वैश्विक शांति की गारंटी दे सके। इसकी पहली पहल हुई इंटर अलाइड कांफ्रेंस से जिसकी परिणीति १२ जून १९४१ को हुए डिक्लेरेशन ऑफ सैंट जेम्स के रूप में हुई जिसे लंदन डिक्लेरेशन के नाम से ज़्यादा जाना जाता है। इसके बाद अगस्त 1941 तक अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रेंकलिन रूज़वेल्ट और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने युद्ध के बाद की दुनिया के लक्ष्यों को निर्धारित करने वाला अटलांटिक चार्टर लिख लिया। इंटर अलाइड काउंसिल की लंदन में ही हुई 24 सितंबर 1941 की अगली बैठक में ब्रिटेन और अमेरिका के साथ साथ एक्सिस माने धुरी देशों के क़ब्ज़े वाली ९ निर्वासित सरकारों और सोवियत संघ ने आम सहमति से अटलांटिक चार्टर को स्वीकार लिया। ये ९ निर्वासित सरकारें बेल्जियम, चेकोस्लोवाकिया, ग्रीस, लग्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पोलैंड, यूगोस्लाविया, और फ्री फ़्रेंच की थीं।

अटलांटिक चार्टर की मुख्य बातें थी कि संबंधित लोगों की स्वतंत्र सहमति के बिना कोई क्षेत्रीय परिवर्तन ना हो, लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार हो, उन्हें संप्रभुता और स्वशासन से जबरन वंचित न किया जाये, सभी देशों को व्यापार और कच्चे माल तक पहुँच मिले, विश्वव्यापी सहयोग बढ़े, श्रम मानकों, आर्थिक प्रगति और सामाजिक सुरक्षा में सुधार हो, "नाज़ी अत्याचार" (जर्मनी) का विनाश हो, ऐसी शांति बने जिसमे सभी देश अपनी सीमाओं में सुरक्षित रह सकें। और समुद्र भी मुक्त हो।

इस सहमति के बाद 1 जनवरी 1942 को यूनाइटेड नेशंस के जनक माने जाने वाले और यह नाम गढ़ने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट, ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल, सोवियत संघ के मैक्सिम लितविनोव और चीन के टी वी सूँग ने उस घोषणा पर हस्ताक्षर किए जिसे यूनाइटेड नेशंस डिक्लेरेशन के नाम से जाना गया। अगले ही दिन 22 और देशों ने इस पर हस्ताक्षर कर दिये।

फिर ब्रिटेन, यूनाइटेड स्टेट्स, चीन और सोवियत संघ ने 30 अक्तूबर को मॉस्को में मॉस्को डिक्लेरेशन में जल्द से जल्द एक सामान्य अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना की ज़रूरत पर हस्ताक्षर किए। इस घोषणा का मूल था सभी संप्रभु राष्ट्रों की बराबरी और उनको इस संगठन की सदस्यता का हक़ जिससे वैश्विक शांति और सुरक्षा बरकरार रखी जा सके। इसके दो महीने बाद दिसम्बर में रूज़वेल्ट, स्टैलिन और चर्चिल पहली बार एक साथ ईरान की राजधानी तेहरान में मिले जहाँ उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शांति की स्थापना की घोषणा की।

आगे का काम थोड़ा जटिल था। एक ऐसा संगठन बनाना जिसके सदस्य सभी देश हों बड़ी मेहनत माँगता है कि उसका ढाँचा कैसा होगा। सो इसके लिए फिर से अमेरिका, ब्रिटेन, सोवियत संघ और चीन के प्रतिनिधि डंबर्कन ओट्स में मिले जिन्होंने इस संगठन के ढाँचे का मसौदा तैयार किया।

इसकी मुख्य बातें थीं- एक सामान्य सभा जिसके सदस्य सभी देश होंगे, एक सुरक्षा परिषद जिसमें 11 सदस्य होंगे, पाँच स्थाई और बाक़ी छह 2 साल के कार्यकाल के लिए आम सभा से चुने जाएँगे, एक अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जो अंतरराष्ट्रीय विवादों का निपटारा करेगा और अंततः एक सचिवालय। इसमें एक और बड़ी बात कही गई- कि किसी देश द्वारा आक्रमण आदि को दबाने के लिए सदस्य देश सुरक्षा परिषद को सैनिक सहायता देंगे क्योंकि सैन्य शक्ति न होना ही लीग ऑफ नेशंस की असफलता का बड़ा कारण था।

11 फ़रवरी 1945 को कांफ्रेंस ने यह घोषणा भी की कि सुरक्षा परिषद में मतदान का तरीक़ा भी निर्धारित कर लिया गया है और इसलिए 25 अप्रैल 1945 को इस संगठन का चार्टर तैयार करने के लिए सैन फ़्रांसिस्को में एक बैठक बुलाई। दुर्भाग्य से इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट का निधन हो गया लेकिन नये राष्ट्रपति ट्रूमैन ने इस बैठक को यथावत रखा। इस कार्यक्रम में पहले 45 देश बुलाये गये थे पर फ़्रांस के आग्रह पर इसमें सीरिया और लेबनान भी जोड़ लिए गये, अर्जेंटीना, नये नये आज़ाद हुए डेनमार्क भी, और बेलारूस और यूक्रेन भी। सो अंततः वहाँ 50 देश एकत्र हुए।

इसी कांफ्रेंस ने यूनाइटेड नेशंस का मूल चार्टर तैयार किया जिसमें इसको 2 महीने से ज़्यादा का समय लगा। हर मुद्दे पर फ़ैसले के लिए दो तिहाई से ज़्यादा का बहुमत चाहिए था!

सबसे ज़्यादा विवादित मुद्दा था सिक्योरिटी काउंसिल में स्थाई सदस्यों के वीटो के अधिकार का- और ये स्थाई सदस्य थे चीन, सोवियत यूनियन, यूनाइटेड स्टेट्स, यूनाइटेड किंगडम और फ़्रांस- दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध में धुरी देशों को हराने की अगुवाई करने वाले देश। अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस ने यूरोप में इस लड़ाई का नेतृत्व किया था तो चीन ने एशिया में जापान को। इस वीटो का छोटे देशों ने बहुत विरोध किया लेकिन अंततः उन्होंने भी इसे स्वीकार ही लिया।

26 जूनसे 1945 को सभी प्रतिभागी सैन फ़्रांसिस्को ओपेरा हाउस में मिले जहाँ इस चार्टर को सर्व सहमति से पारित कर दिया गया। सबसे पहले हस्ताक्षर का सम्मान चीन को मिला क्योंकि वह किसी धुरी देश (जापान) के आक्रमण का पहला शिकार बना था। यहाँ भारत में बार बार होते रहने वाली इस बहस को भी ठीक से समझना चाहिये कि नेहरू ने भारत की स्थाई सदस्यता का मौक़ा चीन को दे दिया! यह विशुद्ध झूठ है- चीन 1941 से ही संयुक्त राष्ट्र संघ के बनने की प्रक्रिया का हिस्सा रहा है और विश्व युद्ध के विजेता देशों में से एक- जापान को हराने वाला! वह 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई सदस्य बन गया था जब भारत आज़ाद भी नहीं हुआ था!

ख़ैर, इस चार्टर के सर्वसम्मति से पारित होने भर से ही संयुक्त राष्ट्र संघ अस्तित्व में नहीं आ गया क्योंकि अभी एक और पड़ाव बाक़ी था- इसमें शामिल होने वाले देशों की संसदों से इसे पारित कराना और फिर उसे अमेरिका के स्टेट्स डिपार्टमेंट को भेजना। यह शर्त अक्तूबर 1945 आते आते पूरी हुई और संयुक्त राष्ट्र संघ माने यूनाइटेड नेशंस अस्तित्व में आया।

तब से संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनिया में बड़ी भूमिका निभाई है। भले ही रवांडा जनसंहार हो या इराक़ पर अमेरिकी हमला जिसमें यूनाइटेड नेशंस नाकाम हुआ, तमाम सारे और संघर्षों में यूनाइटेड नेशंस ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है जैसा हम अभी इज़राइल फ़िलिस्तीन संघर्ष में ही देख रहे हैं जहाँ यूनाइटेड नेशंस के ही दबाव में गाजा में ज़रूरू सामग्री भेजी जा रही है। यूनाइटेड नेशंस की एक और बड़ी कामयाबी मानवीय मामलों में है जहाँ उसने अपने सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स कार्यक्रम के ज़रिए भुखमरी, स्वच्छता, स्वच्छ पानी की उपलब्धता, लैंगिक भेदभाव को कम करने, शिक्षा के प्रसार आदि के मामलों में बड़ा काम किया है!

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